Book Title: Vastupal Prashasti Sangraha
Author(s): Punyavijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 121
________________ १०६ पाल्हण पुत्र कृत । [ षोडशं चलिउ ऊदल्लु महाजनि सहितउं, आबुय देवलवाडइ पहुतओ। ठामि ठामि मंदिरभूमि जोयंतओ, मिलिउ मेलावओ आबुय लोयहं ॥ २२ ॥ मंदिर थाहर नवि आपेसहं, प्राणिहिं भुवणु करण नवि देसहं । आगए विमलमंदिर निप्पनओ, सिर मा भूमिहिं दीनउ दानु ॥ २३ ॥ ठवणिऊदल्लु तित्थु [त]पसीय बहु परि मनावइ । राठी वर गूगुलिया वस्तइं पहिरावइ ॥ २४ ॥ भासअम्हि धुरि गोटिय दिव निमिनाथ, जिणभूमि आपहु ते इसु बाहा । विमल मंदिरु ऊतर दिसि जाम, लक्ष्य भूमि तिल(ज)पालु वधाविउ ॥२५॥ महतइ तेजपाल पभणीजइ, सोभनदिउ सुतहारु तेडीजइ । जाइज आबुइ तुहुं (मुहुतु) कमठाए, वेगिहि जिणमंदिरु निप्पाए ॥ २६॥ चालिउ पइट करिउ सुतहारो, भूमि सुवण इकवार अहारो । सोभनदिउ विगि आबुइ आवइ, कमठा मुहुतु आरंभु करावइ ॥२७॥ भासमूलग्ग पायारधर, पूजिउ कुरुम प्रवेसु । भरिउ गडारउ तहि ज पुरे, खरसिल हुयउ निवेसु ।। आसंनी तहिं ऊघडिय, पाथरकेरिय खाणि । निपनु गडारउ मूलिगओ, देउलु चडिउ प्रमाणि ॥ २८॥ रूपा सरिसउ समतुल ए, दसहि दिसावरि जाइ । पाहणु तहिं आरासणउं, आणिउ तहिं कमठाइ ।। सरवर घाटु जो नीपजए, मंदिरु बहु विस्तारि । त आतिसइ दीसइ रूवडउं, नेमिजिणिंद पयारु ॥ २९ ॥ ठवणिसोभनदेउ सुतहारो कमठाउ करावइ । सइ तउ मंत्रि तिजपालो जिणबिंबु भरावइ ॥३०॥ भासखंभायति वर नयरि बिंबु निप्पज्जए, रयणमउ नेमिजिणु ऊपम दीजए । दिसंति कंति रयणकंति सामल धीरा, बहु पंकति बहु सफति जाइ सरीरा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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