Book Title: Vastupal Prashasti Sangraha
Author(s): Punyavijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text
________________
परिशिष्टम् । ]
रेवतगिरिशसु ।
दियहिं ए नर जो पवर, चंद्रोयें नेमिजिणेसरवरभुयणि । भवि ए भुंजवि भोय, सो तित्थेसरसिरि लहइ ए चहुए संघु करेइ, जो आवइ उर्जितगिरि । दिविसैव ए रागु करे, सो मुंबइ चउगइगमणि अहि ए जय ( झ ) करंति, आठई जो तहिं करइ ए । अट्ठवह ए करम हणंति, सो अट्ठभवि सिज्झइ ए अंबिल ए जो उपवास, एगासण नीवी करई ए ।
तसु मणि ए अछई आस, इहभव परभव विविह परे
पेमहि ए मुणिण अन्नह, दाणु धम्मियवच्छल करई ए । तसु कही ए नहीं उपमाणु, परभाति सरण तिणर
x
आवइ ए जे न उज्जिंति, घरघर धोलिया ए । आविही ए हियइ न संति, निष्फलु जीविउ तासु तणउं जीविउ ए सो जि परि धन्नु तासु संमच्छर निच्छणु ए । सो परि ए मासु परि धन्नु, बलि हीजइ नहि वासर ए जणु ए उज्जलठामि, सोहगसुंदरु सामलु ए । दीसइ ए तिहूणसामि, नयणसलूणउं नेमिजिणु नीजर ए चमर ढलंति, मेघाडंबर सिरि घरीइं । तित्थह ए सउ रेवंदि, सिंहासणि जयइ नेमिजिणु रंगहि ए रमइ जो रासु, सिरिविजयसेणि सूरि निम्मविउ ए । नेमिजिणु ए तूसइ तासु, अंबिक पूरइ मणि रलीए
॥ चतुर्थं कडवं ॥
॥ समन्तु रेवंतगिरिरासु ॥
Jain Education International
१०३
For Private & Personal Use Only
॥ ११ ॥
॥ १२ ॥
॥ १३ ॥
॥ १४ ॥
॥ १५ ॥
॥ १६ ॥
॥ १७ ॥
॥ १८ ॥
॥ १९ ॥
१ आपे ॥ २ चंद्रवो ॥ ३ देवांगना ॥ ४ घरआंगणे ॥ ५ धंधोलीया धंधामां रच्यापच्या रहेनारा, अथवा धांधलीया = रात दिवस धमाल करनारा ॥ ६ निर्जर=देव ॥ ७ रेवंतगिरि ||
व० १४
॥ २० ॥
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154