Book Title: Varni Vani
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 12
________________ प्रस्तावना लोक में अनेक वाद प्रचलित हैं। उन सबको अध्यात्मवाद और भौतिकवाद इन दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। एक तीसरा वाद और है जिसे ईश्वरवाद के नाम से पुकारते हैं। यद्यपि आज तक की विश्व व्यवस्था का आधार क्रम से ये तीनों वाद रहे हैं तथापि वर्तमान कालीन व्यस्था में अध्यात्मवाद का विशेष स्थान नहीं रहा है । इस समय मुख्यता ईश्वरवाद और भौतिकवाद की है। अध्यात्मवादी तो बिचारे कोने में पड़े हुए हैं। वे स्वयं अध्यात्मवादी हैं इसमें सन्देह होने लगा है। अब लड़ाई शेष दो वादों की है। वर्तमान काल में जो अध्यात्मवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्होंने जीवन में ईश्वरवाद की शरण ले ली है। इस या उस नाम से वे ईश्वरवाद का समर्थन करने लगे हैं। इसका कारण है ईश्वरवादियों के द्वारा आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार कर लेना और उनके साहित्य में ईश्वरवाद की छाया का आ जाना। उपनिषद् काल के पहले ईश्वरवादियों ने आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व पर कभी जोर नहीं दिया था पर इतने से काम चलता न देख उपनिषद् काल में उन्होंने किसी न किसी रूप में आत्मा का अस्तित्व मान लिया है। इससे धीरे धीरे अध्यात्मवादी और भौतिकवादी दोनों गौण पड़ते गये । फिर उनके सामने ऐसा कोई खटका नहीं रहा जिसके लिये उन्हें विशेष प्रयत्न करना पड़ा हो। किन्तु अब स्थिति बदल रही है और एक बार पुन: भौतिकवाद अपना सिर उठाने के प्रयत्न में है। लड़ाई तगड़ी है। दिखाई तो यही देता है कि अन्त में भौतिकवाद की ही विजय होगी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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