Book Title: Updeshpad Part 01
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Lalan Niketan Madhada

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Page 8
________________ ॥ ५ ॥ महानागता चास्य जन्ममज्जनकाल एवं सहस्राक्षशंका शंकुसमुत्खननाय वामचरपांगुष्टकोटिविघट्टितामर गिरिवशात् संकुल शैक्षराशे रिलाया विशंस्थूलतासंपादनेन, शक्रकृतपराक्रमप्रशंसा सहिष्णोः क्रीमनव्या जानीतात्मपरिनवस्य स्वस्कंधनगवदारोपणानंतरमेवारब्धगगनतलोल्लंघनका रिकायवृद्धेः सुरस्य वज्र निष्ठुरमुष्टिपृष्टघाताद्भू मित्रत्कुब्जताकरणेन, सकलत्रैलोक्यसाहाय्य निरपेकृतया प्रवज्यानंतरमेव दिव्याद्युपसर्गसंसगधिसहनांगीकारेण, केवलज्ञानलानका चाष्टमहाप्रातिहार्य सपर्योपस्थापनेन, - - दनु - प्रांतरतमः पटनपाटनपटीयसा समस्तजनमनोहारिणा अवितयकथापयस्फीतिकारिणा जातिजरामरणापहारिणा प्रधानार्द्धमागधनाषाविशेषेण समकालमेव मित्रस्वरूपनरावरादिजंतुसंशयसंदोहापोहसमुत्पादनेन, स्वविहारपवनप्रसरेण च पंचविंशतियोजनप्रमाणचतुर्दिग्विनागमदी मंगलमध्ये सर्वाधिव्याधिरजोरा शेरपसार ऐन, सकल सुरासुरातिशायिशरीरसौंदर्यादिगुणग्रामवशेन च, त्रिजुवनस्यापि प्रतीतैव. महानागना ऐ जगने जाहीती छे :- तेणे जन्मनात्र वखते इंद्रनी शंका टाळवा मेरुदा अनेक पर्वतोवा की जमीनने विसंध्थूळ करी, इंद्रे करे प्रशंसाथी चीरमाने रमतमा पोनेहा बनने पोताना वंधे चाव आकाशगी शरीरने वधारनार देवने तेपणे वज्रमाफक मूत्र मारी भूमि सकुनाकाना पण साहाय्यत! अपेक्षा न राखतां दोका लेवा बाद तरतन दिव्य उपसर्ग सहेवा कबूल कर्या वनांत महानातिहार्य उपस्थित थयां, बाद आंतरना अंधाराने दूर करनार सौना मनहरनार सत्य वाताने जगावतार जन्नतरा महणने अनार अर्धपागो जात्रा समाज अनेक सुरासुरादि जंतुना संशय तोड्या, पोताना विहारथी पचीश योजननी चारे दिशाओमी आधिव्याधि दूरथी, अने सघळा सुरापुर करतां तेपना शरीर सौंदर्यादि गुणो अधिक हता. या कारणोयी ते महानाग हता. श्री उपदेशपद.

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