Book Title: Updeshpad Part 01
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Lalan Niketan Madhada

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ए कतिचित्स्वल्पानि सूत्रतोऽर्थतस्त्त्रपरिमाणानि - सर्वसूत्राणामनंतार्थाजिधायकत्वेन पारगतगदितागमे प्रतिपादनात् तथा चार्ष - सव्वनईां जादुज - वालुया सव्वनदहिजं तोयं । एतो गुओि - त्यो सुत्तस्स एकस्स. । कथं वक्ष्ये इत्याह तस्य महानागादिगुणजाजनस्य जगवतो महावीरस्योपदेशास्तडुपदेशास्तेभ्यस्तहुपदेशतः महावीरागमानुसारेणेत्यर्थः - स्वातंत्र्येण ब्रह्मस्यस्योपदेशदानानधिकारित्वात्. कीदृशानीत्याह — सूक्ष्माणि सूक्ष्मार्थप्रतिपादकत्वात् कुशाग्रबुद्धिगम्यानि, अतएव नावापर्य तदेव सारः पदवाक्यमहावाक्यार्थेषु मध्ये प्रधानं तेन युक्तानि जावासारयुक्तानि . वेट एटले सूत्र या बाकी अर्थी तो अपरिमित - केमके सर्वे सूत्र नंत र्थना कहेनार छे सर्वागमम कलुं छे. जुवो ऋषिवाक्य या रीते छे :सर्व नदीओनी उनी वालुका तथा सर्व समुद्रोनुं जेटलं पाणी जे तेनाथी अनंतगले एक सूत्रनो अर्थ छे, छे . कहीश ते कहे बे :- महानागादिगुणवान् जगवान् महावीरना उपदेशने अनुसरीने, केमके स्वतंत्रपद्मस्थने उपदेश देवानो अधिकार नथी. पदो केवां ते कहेछे । —सूक्ष्म एटले के सूक्ष्म अर्थना जलावनार होवाथी कुशाग्र बुद्धिथी जगाइ शके एवां, तेथीज नावार्थ एटले पर्य ( तात्पर्य ) तेज पढ़ार्थ, वाक्यार्थ ने महावाक्यार्थमां सार एटले प्रधान गाय बे तेणेकरीने युक्त. श्री उपदेशपद.

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 420