Book Title: Updeshpad Part 01
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Lalan Niketan Madhada
View full book text
________________
अद्य श्वो वा परश्वो वा-श्रोष्यते निष्पतिष्यतः, परिपक्कफास्येव- वपुषोपिट.
णक्कः ॥ ५ ॥ मनुजवळजत्वमेवाह___अश्वहं च एयं–चोलगपमुहेहि अत्य समयंमि, जणियं दिच्तेहिं-अहमवि ते संपविक्खामि ॥४॥
अतिर्खनंचातिरापमेव एतन्मानुषत्वं चोरकप्रमुखैरनंतरमेव व्याख्यास्यमानैर्दशतिरबार्हते समये सिद्धांते जणितं निरूपितं वर्तते दृष्टांतैरुदाहरणैः–यदि नामैवं ततः किमित्याह अहमपि कर्ता-न केवलं पूरेवोक्ता इत्यादिशब्दार्यः-तान् चो
कादिदृष्टांतान् संप्रवक्ष्यामि नगवद्नवाहुस्वामिन्नणितानुसारसांगत्येन प्रतिपादयिष्यामि. आजे, काले, के परमदिने पाकेला फळनी माफक पमनार शरीरनो टणकारो सनळाशे. २.
. मनुष्यनवर्नु पूर्खनपांज कहे छ :जैन सिद्धांतमा चोहक वोरे दृष्टांतीथो ए मनुष्यपाणु अतिर्बन कहे , तेथी हुँ पण ते दृष्टांतो कहोश. ४.
अति पुन एटले अति मुश्कलीथी पभाय छे आ एटले मनुष्यपणं चोझक वगेरे हवे तरतमां कहेवामा आवनार दश दृष्टांतीथी एम आ समयमा एटले जैन सिद्धांतमां कहेलु छे.
ज्यारे एम ने त्यारे हुं आ ग्रंथनो कर्ता पण-(नहिक फक्त पूर्वाचार्योज कहो गया रे-) ते चोहकादिक दृष्टांता लगवान्नद्रबाहुस्वामीए कहेला छे तेने अनुसारे प्रतिपादन करीश.
श्री नपदेशपद.

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 420