Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 9
________________ गाथा गाथा १४५-४६ १६७-६८ १६९-७० ॥९॥ १७१ १४७ २८५ १४८ १४९ १७२-७९ ५०-५९ विषय चरणाघाते-नृप-युवकयोः २५७ ,. आमलके-मणीच–कयोश्चिबुद्धिमतोः २५७ सर्प-चण्डकोशिकस्य (प्रा०४३) २५९ खङ्ग-श्रावकपुत्रस्य २६२ स्तूपेन्द्र-अविनीतकुलबाल कस्य (प्रा० ९०) २६२ ॥ सुमतिविप्रस्य (प्रा० ३३) २६७ उपसंहारो बुद्धिचतुष्टयसङ्गतः २७४ " धर्मप्राप्ती निपुणबुद्धिरावश्यिकी २७५ बुद्धिमद्विषया भक्त्यादयोपि फलप्रदाः २७६ कल्याणमित्रतादियोगे भक्त्यादि २७६ निखलकार्योत्पत्तिः कालदिकारणजम्याकालादिकारणान्यपि समुदितानि सम्यक्त्वभाजिमिथ्यारूपाण्यन्यथा विषय पृष्ठ कालस्वभावनियत्यादिस्वरूपञ्च २७७ साधकबाधकतादिनिरीक्षण सम्मतिरेव २८११ इह-नारदपर्वतयोः (प्रा० २२) २८२ “परिज्ञानपूर्वककार्यप्रवृत्ती पराभवाभावत्वम् इहापि-रोहिणीवणिग् (धनश्रेष्ठि-) दृष्टान्त: (यद्भव्यायप्रव्रज्याप्रदानानन्तरं श्रावयते) (प्रा०५९) प्रकृष्टफलसाधकत्त्वानुबन्धप्रधानत्वं सोदाहरणम् निखिलधर्मस्थानेऽहिंसाप्राधान्यम् एतदवगमस्त्वागमादाप्तवचनाच्च चारित्रादिसकलधर्मानुष्ठानादिसर्वज्ञाज्ञाधीनम् २९६ आज्ञोपयोगभावाभावत्वे दृष्टान्तद्वयी २९७ भावविशुद्धिरेव प्रमाण किमाज्ञया ? तत्र समाधानम् २९८ १८०-८२ १६१ १६२ १८३ १८४ १८५ १८५-८६ १८७

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