Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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पृष्ठं
अनुक्रमः
उपदेशपदा
॥१४॥
गाथा विषय
, (१) क्षपकस्य , (२) आगमिकस्य , (३) उदायिनृपमारकविनयरत (त्न)स्य
" (४) कुन्तलदेव्याः ४९८ दुःखरूपदुःखफलरूपसङ्क्लेशस्य वर्जनीयत्वम्
४९४ ४९९-५०० प्रकृतोपदेशसाफल्यस्थाननिरूपणम् ४९५
सूत्रार्षदामे प्रज्ञाप्रज्ञावतोभेंदे-भेदप्र० ४९६ ५०२-०३ अपूर्वज्ञानग्रहणताया नित्याभ्यासताया
चकेवलज्ञानोत्पत्तिः ५०३-०५ गुणस्थानकपरिणामे व्याघाताभाव
त्वम्, स्थूलप्राणातिपातादिरात्रिभोजनविरतिविषये यथानुक्रममुदाह- .
रणषट्कम् ५०६-१० (१) श्रावकसुतस्य
गाथा विषय ५११-१५ व्रतपरिणामप्रधान्यम् ५१६-२० (२) सत्योदाहरणम् ५२१--२५ (३) गोष्ठियाद्धस्य ५२६-३० (४) कौशाम्बीस्थसुदर्शनस्य [५६]
, शीलव्रतधारि-चम्पापुरिस्थ
सुदर्शन धेष्ठिनः[प्रा० १६०] ५३१--३५ (५) नन्दहिकस्य ५३६--४० (६) आरोग्यहिजस्य ५४१ गरुलाघवालोचनविकलानां स्वपराक
स्वाणकरत्वम् ५४२-४३ न मुक्तिर्दुरुचीर्णकर्मक्षयं विनाऽत उप
- सर्गादि सोढव्यम् । ५४४-४५. पुष्टालम्बने व्याधिप्रतिकारप्रवृत्तौ सत्यां
निर्जरादि मातृस्थानासेवनञ्च ५२८ ५४६-४८: विपर्यासव्यावृत्तित्वानिवृतिपथप्रवृत्ति त्वम् ५२९

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