Book Title: Updeshmala Balavbodha Purvardha
Author(s): Kantilal B Shah
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre

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Page 13
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ऐनमः श्रीवर्द्धमानाय ॥ श्रीवर्द्धमान जिन वश्मान म्यननो मिबालबोधात वात्रपिं विवर णमुप देशमा लाया। श्री तयाग सरोजर विश्री देव सुंदर पेंद्र दिनेयः । श्रदव ग्रविहिनाग्रहित श्री सोमसुंदर गुरुः कुरुतेऽद् ॥ ॥न मित्र जिवरिदेोइद नरिंदच्चियतिलो गुरुवय्स माल मिणम।। बुद्धा मिगुरु व एसे गं ॥१ जिन वरेंद्र श्री नीचे कर देवान मिकरण के ही इन मरकरी । इमे । एनपदेवा नी माला श्रेणि बुच्छा मिबोलिखागु रुपए से । गुरुआत करगलधरादिकते दन इनपदेसिन आपली बुद्धि | श्री जिन वारंडे किस्पाइद नदिचे ६४ नाडचक्रवर्त्तिवासुदेव मुखनरश्वति चिनविशेवली किस्पा बनि लोडा गुरु । स्वर्गमपातालरूप जेत्र निलो कते दारूसम्पर्ग मोक्षमार्गत उपदेस पार ॥ १९ दिल्ली गाधा या बिलां आचार्यनीकीधी। संबंधा जाणिवासी श्री धर्मदास गणिशाख धुरिमंग लीकनी पहिला नश्चन वीस माश्रीती चक रमन म स्वारकदा गचूडामणि सूजन सो वीरो निलो सिरितिल । एगो लोगा इच्चो ! एगोच रकू निटू अस्स सनो कही ई श्रीयादिनाघाते कि सिउब जगचूडामणि जगतीश्च ऊद्र ज्ञात्मक लो दिन चूडामणिमुकुट समान व मुक्तिपदस्त्रितती नरवीरो श्री महावीर किसिन बतिला सिरिति । त्रिलोक श्री त्रितुच नलक्ष्मी तदन तिलक सरीषा तिलक करी जिममुख सोतिम परमेश्वरश्री महावीरेकरी विनो इछ। एगो लोगा इच्चे।। एक श्री आदिनाथ लोक द्विआदित्य समान जिमान इस मया दिव्यकरी |सकल किया मार्गप्रवर्त्त। तिमयुगन रधुरि श्री आदि नाघि करी सकल लोकव्यवहारानधर्मव्यवहार ઉપદેશમાલા બાલાવબોધ'ની સં. ૧૫૪૬માં લખાયેલી હસ્તપ્રત (ગ)નું પ્રથમ પાનું.

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