Book Title: Tulsi Prajna 1993 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ आचार्य कुन्दकुन्द और परवर्ती साहित्य - डॉ० प्रेम सुमन जैन श्रमण परम्परा और सिद्धांत के जो संरक्षक और प्रभावक आचार्य हुए हैं, उनमें आचार्य कुन्दकुन्द प्रमुख हैं । कुन्दकुन्द के जीवन, व्यक्तित्व, योगदान आदि पर विद्वानों ने जो अध्ययन प्रस्तुत किये हैं, उनसे स्पष्ट हुआ है, कि ईसा की प्रथम शताब्दी के आस-पास के दार्शनिक और साधनायुक्त जगत् को कुन्दकुन्द ने अपने साहित्य एवं संयमपूर्ण जीवन से पर्याप्त प्रभावित किया था। उनका यह प्रभाव तात्कालिक ही नहीं रहा, अपितु जैन दर्शन और साहित्य की परम्परा में होने वाले परवर्ती आचार्यों के जीवन और लेखन को भी उन्होंने प्रभावित किया है । परवर्ती दार्शनिकों के चिन्तन को भी उन्होंने गति प्रदान की है। किन्तु यह प्रभाव जीवन में प्राणतत्व की भांति इतना घुलामिला है कि उसे मुखरता एवं आकार प्रदान करने के लिए अत्यन्त गहन खोज और समीक्षा की आवश्यकता है। आचार्य कुन्दकुन्द के टीकाकारों के पूर्व तक के साहित्य में कुन्दकुन्द किस-किस रूप में विद्यमान हैं, इसके संकेतों को यहां स्पष्ट करने का प्रयत्न है । पूर्ण चित्र उपस्थित करने के लिए तो इस विषय पर स्वतन्त्र प्रबन्ध लिखे जाने की अपेक्षा है। ___ आचार्य कुन्दकुन्द को परवर्ती साहित्य ने कितना और किस रूप में स्मरण किया है, इसको रेखांकित करने के विभिन्न आयाम हो सकते हैं । यथा (१) जैन संघ इतिहास के विकास में कुन्दकुन्द की क्या भूमिका है ? (२) विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों में आचार्य कुन्दकुन्द को किस रूप में स्मरण किया गया है ? (३) कुन्दकुन्द के गुरु एवं शिष्य-परम्परा विषयक गच्छ एवं गण सम्बन्धी साहित्य में कुन्दकुन्द के क्या उल्लेख हैं ? (४) अर्धमागधी आगम साहित्य के विभिन्न ग्रंथों में (जो ईसा की ५ वीं सदी तक लिपिबद्ध हुए हैं) कुन्दकुन्द किस रूप में अंकित हैं ? (५) वैदिक परम्परा के दार्शनिक एवं आचार-शास्त्रों में कुन्दकुन्द के चिन्तन को किस रूप में स्मरण किया है ? (६) पालि साहित्य एवं अन्य जौद्ध ग्रन्थों में कुन्दकुन्द के क्या उल्लेख हैं ? (७) भारतीय पुरातत्व के अवशेषों में (मूर्तिलेख, चरण-स्तम्भ, मंदिर-प्रशस्ति) कुन्दकुन्द का क्या रेखांकन है ? (८) महाराष्ट्री प्राकृत खण्ड १९, अंक २ ४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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