Book Title: Tirth Darshan Part 1 Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh ChennaiPage 17
________________ परमपूज्य आचार्य श्री विशालसेनसूरिजी महाराज का मैं अत्यन्त आभारी हूँ जिन्होंने ग्रंथ के प्रचार व अग्रिम बकिंग करवाने में विशेष सहयोग प्रदान किया है । मैं उन सभी सहायकों का भी आभारी हूँ जिन्होंने बुकिंग करने व कराने में विशेष सहायता प्रदान की है । उन सब का विवरण देने में मैं असमर्थ हूँ एवं उन सबको हार्दिक धन्यवाद देता हूँ । मेसर्स प्रसाद प्रोसेस (प्रा.) लिमिटेड-मद्रास, ऑल इन्डिया प्रेस-पान्डिचेरी, जन्म भूमि प्रेस-बम्बई, फोटोग्राफर गोपालरत्नम्-मद्रास, एवं सी. हरिशंकर गुप्ता-मद्रास, को भी धन्यवाद देना अपना कर्तव्य समझता हूँ जिन्होंने प्रिंटिंग, फोटोग्राफी व संशोधन कार्य में अत्यन्त रुचि लेकर कार्य को सुन्दर ढंग से सफल बनाने में सहयोग प्रदान किया है । जिन कार्यकर्ताओं ने अपना अमूल्य समय निकाल कर तन, मन या धन से निःस्वार्थ सेवा करते हुए इस पुनीत कार्य में सहयोग प्रदान किया है उन सबका मैं अत्यन्त आभारी हूँ । कार्यकर्ताओं की इस प्रकार की सेवा के कारण कागज व मुद्रण व्यय के अतिरिक्त संघ के कार्यालय का व अन्य खर्चा नहीं के बराबर था अतः उनकी सेवा के लिये उन सबकों मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ । अन्त में मैं उन सभी आचार्य भगवन्तों, मुनि महाराजों व महानुभावों को आभार प्रदर्शन करते हुए हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से इस पुनित कार्य में अपना सहयोग प्रदान किया है । त्रुटियों के लिये क्षमा : इस ग्रंथ के लिये सामग्री जुटाने व प्रकाशन करने में जितना बन सका उतना यथासंभव कार्य किया गया है । परन्तु त्रुटियों का होना स्वाभाविक है अतः आचार्य भगवन्तों, मुनि महाराजों, विद्वानों, तीर्थों के व्यवस्थापकों, सहायकों व पाठकों से निवेदन है कि कृपया त्रुटियों के लिये क्षमा करें व अपने अमूल्य सुझावों के साथ उन्हें हमारे ध्यान में लावें । तीर्थ क्षेत्र व तीर्थ यात्रा : तीर्थ क्षेत्र अपना विशिष्ट महत्व रखते हैं । वहाँ के परमाणुओं में ऐसी अद्भुत शक्ति रहती है जो यात्रियों को भक्ति की तरफ सहज ही में खींच लेती है । जहाँ प्रभु के कल्याणक हुए हों, जहाँ प्रभु के चरण स्पर्श हुए हों, जहाँ सदियों से प्रभु-भक्ति व पूजा हो रही हों, जहाँ असंख्य मुनियों ने तपस्या की हों, वहाँ विशिष्ट प्रकार के शुद्ध परमाणु फैले बिना नहीं रहते । वे आँखों से ओझल रहते हुए भी प्राणी की आत्मा पर ऐसा असर करते हैं कि वह बाह्य कार्य-कलाप भूलकर प्रभु भक्ति में तल्लीन हो जाता है। जिस जगह के जैसे परमाणु होते हैं उसी ढंग का प्रभाव प्राणी की आत्मा पर पड़ता है । इसलिये परम्परा से हर धर्म में तीर्थ क्षेत्रों को महत्वपूर्ण स्थान दिया है । तीर्थ यात्रा करने वाला व्यक्ति भी उस दौरान एक अलग ही शान्ति का अनुभव करता है । यह शास्त्रासिद्ध तो है ही प्रत्यक्ष प्रमाण भी है, अनेकों ने अनुभव किया है व करते आ रहे हैं । तीर्थ यात्रा में भ्रमण करने वाले प्राणी प्रभु में खो जाते हैं व अपने कर्मों का क्षय करते हुए पुण्य का संचय करते हैं । अतः तीर्थ यात्रा पाप विनाशकारी, पुण्योपार्जनकारी, सर्वसुखकारी व आत्म हितकारी है जो मनुष्य के जीवन में अत्यन्त आवश्यक है । अंत में श्री जिनेश्वर व गुरु भगवन्तों को यह ग्रंथ समर्पण करते हुए प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि "तीर्थ-दर्शन" घर घर की ज्योति बने व सभी पाठकों को तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा का सुअवसर प्राप्त हों । इसी अभिलाषा के साथ : नवम्बर 1980 । यू. पन्नालाल वैद मंत्री, श्री महावीर जैन कल्याण संघPage Navigation
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