Book Title: Tirth Darshan Part 1
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 15
________________ श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिरों को भेजा । साथ में प्रचार के लिये पोस्टर भी भेजे । हमें प्रसन्नता है कि कार्य आम तौर पर पसन्द किया गया व अनेकों आचार्य भगवन्तों व मुनि महाराजों के आशीर्वाद भी प्राप्त हुए । अग्रिम बुकिंग की आवश्यकता :____ माननीय सहायकों से हमने जितना सहयोग प्राप्त किया था उससे पाँच - छ: गुना खर्च अधिक था। हम यह नहीं चाहते थे कि कर्ज लेकर आवश्यकता की पूर्ती की जाय । अतः कम मूल्य में अग्रिम बुकिंग करके आवश्यकता की पूर्ती करने का निर्णय लिया गया । इस प्रयत्न में भी समाज का प्रोत्साहन सहित सहयोग प्राप्त हुआ । विलम्ब का कारण : हम इस कार्य की व्यापकता का कोई अनुमान नहीं लगा सके थे । हमने समझा था कि फोटोग्राफी होते ही अन्य कार्य शीध्र हो जायेंगे । परन्तु यह तो श्रीगणेश था । हमने यह भी सोचा था कि तीर्थों के इतिहास का गठन पेढ़ी वालों के सहयोग से शीध्र हो जायेगा । लेकिन इसमें भी हमारा अनुमान गलत था । शोध कार्य के कारण विषय का गठन करने में अनुमान से कई गुना अधिक समय लगा। हमारा उद्देश्य था कि हर पेढ़ीवालों को जानकारी देकर व उनके सुझावों पर गौर करके विवरण मुद्रित करें। अतः पत्र व्यवहार में अत्यन्त समय निकल गया तथा निरन्तर कार्य करने पर भी इतना समय लग गया। नये ढंग का व अति विशाल कार्य होने के कारण समय का बराबर अनुमान नहीं लगाया जा सका अतः ग्रंथ नियत समय तक प्रकाशित नहीं हो सका । जिससे सहायक महानुभावों व अग्रिम बुकिंग कर्ताओं को लम्बे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ी इसके लिये मैं क्षमा प्रार्थी हूँ व उनकी सहनशीलता के लिये मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। विभिन्न भाषाओं में प्रकाशन : ____ हमने सूचित किया था कि ग्रंथ विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित किया जायेगा । लेकिन प्रति भाषा के लिये न्यूनतम पांच सौ प्रतियों की बुकिंग आवश्यक है । हिन्दी व गुजराती की बुकिंग निर्धारित संख्या से ज्यादा हो पाई जिनका प्रकाशन कर रहे हैं । अब हम अंग्रेजी भाषा में प्रकाशन का प्रयत्न करेंगे ताकि अन्य लोगों के लिये भी यह ग्रंथ उपयोगी हो सके । पर्यटकों से : तीर्थ स्थानों पर जैन-यात्रियों के लिए आवास का साधन व भोजनशालाओं की कई स्थानों पर सुविधाएँ हैं । अन्य लोगों को पूर्व पत्र व्यवहार करके या अपने साधन के साथ जाना सुविधाजनक होगा। जैन तीर्थ-क्षेत्र प्रायः एकान्त में शान्त व निर्मल वातावरण में स्थित हैं, जो अपनी विभिन्न शैली की कला के लिए प्रसिद्ध हैं । ऐसी कला के नमूने अन्यत्र कम मिलेंगे । आप सिर्फ पर्यटक के रूप में न जाकर अपने को यात्री समझें व प्रभु को भावपूर्वक वन्दन करें । आप भी विशिष्ट आनन्द का अनुभव करेंगे । जैन-यात्रियों के लिये कुछ मुख्य सुझाव : हमें यात्रा में जो अनुभव हुए उन्हें यात्रियों के ध्यान में लाना आवश्यक समझता हूँ। 1 यात्रा शान्ति से करें चाहे यात्रा कम जगह की हों । तभी आप विशेष आनन्द का अनुभव करेंगे । 2 यात्रा में खाने की कुछ सूखी सामग्री साथ रखें ताकि अधिक जगह की आप यात्रा कर सकेंगे । दिन में एक बार गरम रसोई का साधन मिल जाय तो स्फूर्ति के लिय पर्याप्त है । 3 भ्रमण का मार्ग प्रथम निश्चित कर लें ताकि समय व्यर्थ न जाय । 4 यात्रा में कम से कम सामान, ओढ़ने-बिछाने का साधन व पूजा के वस्त्र साथ रखें । 5 यात्रा जाने के पहले वहाँ की विशेषता आदि की जानकारी पढ़कर जावें ताकि आप विशेष प्रफुल्लता का अनुभव करेंगे ।

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