________________
प्रस्तावना
लेखक:- पूज्य विद्वान मुनिराजश्री मित्रानंद विजयजी महाराज
*
भारतीय प्राच्यतत्त्व प्रकाशन समिति, पिंडवाडा [ राजस्थान ] द्वारा संचालित आचार्यदेव श्रीमदूविजयप्रेमसूरीश्वर कर्मसाहित्य जैन ग्रंथमाळाना द्वितीय पुष्प तरीके प्रगट थयेलो 'मूलपयडिटिइबंधो' [ मूलप्रकृति- स्थितिबन्ध] ग्रंथ वाचकोना -दर्शकोना करकमलमां आवी रह्यो छे.
भा० प्रा० प्र० समिति, ग्रंथमाला तरफथी हाल मुख्य त्रण ग्रन्थो प्रकाशित करवानी तैयारी कर रही छे. १ खवगसेढी [क्षपकश्रेणि], २ उपशमनाकरण, ३ बंधविहाण [बन्धविधान]. आत्रणमां बंधविहाण अक महाकाय ग्रंथ छे. अना लगभग १४ भाग पडे छे ओटले १४ मोटा पुस्तक [ बोल्युम ] प्रमाण आ ग्रंथ थशे.
बंधविधान महाशास्त्र :
प्रथमखण्ड
द्वितीयखण्ड
तृतीयखण्ड
चतुर्थखण्ड
Jain Education International
प्रकृतिबन्ध भा० १ मूलप्रकृतिवन्ध
भा० २ उत्तरप्रकृतिबन्ध
भा० ३,"
भा० ४
भा० ५
"
"
भा० ३
ܕܪ
11
15
"
स्थितिबन्ध भा० १ मूलप्रकृति स्थितिबन्ध
भा० २ उत्तरप्रकृति स्थितिबन्ध
भा० ३
29
17
स्थानप्ररूपणा १
२
रसबन्ध
भा० १ मूलप्रकृति रसबन्ध भा० २ उत्तरप्रकृति रसबन्ध
"
19
भूयस्कारादिवन्ध
99
भृयस्कारादिस्थितिवन्व
भूयस्कारादिरसबन्ध
प्रदेशबन्ध
भा० १ मूलप्रकृति प्रदेशबन्ध भा० २ उत्तरप्रकृति प्रदेशबन्ध भा० ३ "
भूयस्कारादिप्रदेशबन्ध
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org