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सर्जनमाटे गुजराती, हीन्दी, अंग्रेजी भाषा पसंद न करता संस्कृत प्राकृत भाषानी पसंदगी शामाटे करी ? आ प्रश्ननुसमाधान ओछे के (१) संस्कृत प्राकृतभाषा सर्वदेशीय अने सर्वकालिक छ. अमां परिवर्तनो भाग्येज आवे छे, आ भाषाओनी हजारो वर्षोथी प्रायः अक सरखी पद्धति चाली आवे छे. (२) आ भाषाओनी खूबी ओ छे के विषयना गमे तेवा विस्तार के अतिविस्तारने जे रीते वधुमां वधु संक्षेपमां आ भाषाओमां रजू करी शकाय छे ते रीते प्रायः बीजी भाषाओमां रज़ करवो अशक्य छे. प्रस्तुत विषयना अगाध विस्तारने सांकेतिक शब्दोने के यंत्रोने धारी रीते बीजी भाषाओमां कोइ रीते न समावी के समझावी शकाय. (३) गुजराती वगेरे भाषाओ प्रत्येक युगमां पलटाती रहे छे. दरेक प्रान्तोमां पण ते अंगे घगी भिन्नता प्रवतें छे तेथी युगपरिवर्तन साथे आ ग्रंथो पण अनुपादेय बनी जाय. आवा अनेक कारणोथी संस्कृत-प्राकृतभावानो आश्रय लेवायो छ छतां ग्रंथमां विषयपरिचय साररूपे गुजरातीभाषामां आप्यो छ. 'स्थितिबंध' ना टोकाकार मुनिवर्य श्री जगच्चंद्रविजयजी:
___ आ प्रस्तुतमां प्रकाशित थइ रहेलो मूलपयडो ठिइबंधो [ मूलप्रकृति स्थितिबन्ध ] ग्रंथनी प्रेमप्रभा' नामनी २० हजार श्लोक प्रमाण टीका [विवेचन] ना रचयिता मारा . लघु गुरुबांधव मुनिराजश्री जगच्चंद्रविजयजो छे. पूज्य परमगुरुदेव पंन्यासप्रवरश्री भानुदिजयजी गणिवरना शिष्यरत्न मारा पूज्य गुरुदेव पंन्यासप्रवरश्री पद्मविजयजो गणिवर्यनातेओ शियरत्न छ. प्रथमथीज आ मुनिवर नी बुद्धि कुशाग्र अने तप्रधान हती. अदम्पउत्साहथी गुरुसेवा अने ज्ञानोपासना साथे तेमणे आजे १४ वर्षेने अंते पण लगभग नित्य अकासगानो तप अजोड त्याग साथे चालुज राख्यो छे. आ टीकाग्रंथनी रचनामां तेमणे अपूर्व बुद्धिकौशल वापर्यु छ. न्याय, व्याकरण, आगम, प्रकरण अने कर्म साहित्यविषयक अमनी विद्वत्ता आ टीकाग्रंथ मां देखाइ आवे छे. आ 'प्रेमप्रभा टीकाग्रंथनी मौलिकता :
(१) मूलगाथाना प्रतीको पद्धतिसर जरूर पड़े त्यां टीकामां उतायो छे. (२) ते प्रतोकोनो स्पष्टशब्दार्थ करवामां आव्यो छ. (३) जरूर पड़े त्यां मे प्रतीकोनो तथा समग्रगाथानो रहस्यार्थ खोलवामां आव्यो छे. (४) पदार्थने सचोट सिद्ध करती प्रबल युक्तिओ आपी छे. (५) प्रसंगोपात ६० उपरांत शास्त्रग्रन्थोना ३०० लगभग साक्षी पाठो आप्या छे. (६) शंका अने तेना समाधानो द्वारा विषयने रसमय अने सुबोध बनाव्यो छे. (७) कोइक स्थले मूलगाथामां न कहेला ते ते विषयना मतांतरो टीकाकार विद्वानमुनिवरे अन्य शास्त्रग्रंथोनु अबलोकन करी पदार्थसंग्रहकार मुनिवरो साथे विचारणा करी संगृहीत कर्या छे. (८) सूक्ष्म बावतोने समजवानी सरळता माटे घणे ठेकाणे दृष्टान्तो आपी विषयनु विशदोकरण कयु छ जुओ
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