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विषय-परिचय चोथाएकजीवाश्रय काळद्वारमां-ओपथी अने आदेशथी ते तेमार्गणास्थानोमा रहेल कोई एक जीव ज्ञानावरणादि ते ते मूलकर्मनो उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट वगेरेमांथी एक एक प्रकारनो स्थितिबन्ध निरन्तरपणे ओछामा ओछो केटलो काळ सुधी करे, अने वधारेमां वधारे केटलो काळ सुधी करे ते रूप बन्धकाळनु जघन्य उत्कृष्ट प्रमाण बतावीने ते काळ क्यांक जघन्यथी समयमात्र ज अथवा अन्तमुहूर्तमात्र ज होय के तेथी वधारेज होय, जेमके-नरकगतिओघमार्गणामां ज्ञानावरणादि कर्मनो अजघन्यस्थितिवन्धनो जघन्यकाळ बेसमयन्यून दशहजारवर्ष होय, तो ते तेटलो शा माटे ? तेथी ओछो केम नहि ? इत्यादि विवेचनद्वारा स्पष्टकरी बताव्युछे. एम उत्कृष्टकाळने पण हेतुओ द्वारा सिद्ध करवामां आव्यो छे.
___ आ द्वारमा १४७ मी गाथामां एकेन्द्रियओघ वगरे केटलीक मार्गणाओमां ज्ञानावरणादिना अनुत्कृष्टस्थितिवन्धनो जघन्यकाळ एकसमय नहि बतावतां अन्तमुहूर्त बताव्यो छे, जे सिद्ध करतां टीकाग्रन्थमा भवना छेल्ला अन्तर्मुहूर्तमा उत्कृष्टस्थितिवन्धने करनारा जीवो. पोताने प्रायोग्य हलकामां हलकी गति जाति वगेरेमा जनारा होय छे इत्यादि विस्तृत विवेचन द्वारा समजाववामां आव्यु छे के जे विवेचनमां वर्णवायेला पदार्थो आगळना ग्रन्थने समजवामां बहु उपयोगी छे, ते उपरांत ग्रन्थ-लाघव माटे आगळ अने पाछळ ( उत्तरस्थितिबन्ध रसबन्ध प्रदेशबन्ध)ना ग्रन्थमां ते ते मार्गणाओनी एकजीवाश्रय कायस्थितिनी भलामण करी होवाथी अहीं (१५०थी १८४ सुधीनी गाथाओ बड़े ) १७० मार्गणाओनी एकजीवाश्रयी उत्कृष्ट अने जघन्य कायस्थिति केटलाक मतान्तर पूर्वक बताती छे जे श्रीप्रज्ञापनाआगम वगेरे ग्रन्थान्तरनी साक्षीओ वगेरे बड़े विवेचाई छे, एटलुज मात्र नहि पण कालद्वारनां यन्त्रो दर्शावतां पहेलां लगभग एकज पत्र उपर क्रमशः १७० मार्गगानी जघन्य अने उत्कृष्ट कायस्थितिनो गाथानंबर साथेनो यंत्र अने ते कायस्थितिमां केटलीक मार्गणाओमां भवस्थितिनी भलामण करी होवाथी जघन्य अने उत्कृष्ट भवस्थितिनो यंत्र पण साथे साथे आप्यो छे.
पांचमा एकजीवाश्रयी अन्तरद्वारमां-पूर्वनी जेम ओपथी अने आदेशथी १७० मार्गणास्थानोमां कोई एक जीव मूळप्रकृतिनो उत्कृष्टादि विवक्षित एकप्रकारनो स्थितिबन्ध न करे तो ओछामां आछो केटलो काळ न करे, ए रूप जघन्य अन्तर, अने वधारेमां वधारे केटलो काळ न करे ते रूप उत्कृष्ट अन्तरर्नु प्रमाण बतायवामां आव्युछे (आ काळनी आदिमां अने अन्तमां ते विवक्षित स्थितिबन्ध होय तोजते अन्तर तरीके गण्यो छे,) अने टीकामां ते अन्तरने सिद्ध करी घटनाओ करवामां आवी छे, एमां केटलीक मागेणाओमां ज्यां ते ते अन्तरनु प्रमाण देशोनकायस्थिति बताव्यु छे त्यां 'देशोन' थी अन्तर्मुहूर्त, बे अन्तर्मुहूर्त वगरे केटलो काळ कायस्थितिमांथी वर्जनीय छे एनी एकादमार्गणामां भावना की वाकीनी मार्गणाओ माटे दिगदर्शन कराव्युछे.
ते ते जीवोने चालुभवनो त्रीजो, नवमो, सत्तावीसमो वगेरे भाग जेटलु आयुष बाकी होय
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