Book Title: The Jain 1998 07
Author(s): Amrit Godhia, Pradip Mehta, Pravin Mehta
Publisher: UK Jain Samaj Europe

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Page 181
________________ 10th amiversary pratishtha mahotsava श्री नरेन्द्रकुमार भानावत, 'साहित्यरत्न भगवान महावीर का साहित्यमा विश्वशांति का एक मात्रा उपाय अपरिग्रहवाद HI उपाय मनुष्य की अन्तिम मंजिल की अगर कोई कसौटी है तो वह है शांति, उसने किया। मार्क्सवाद की विचार-धारा में भी वह बहा । लेकिन चाहे आध्यात्मिक क्षेत्र में हम इसे मुक्ति कह कर पुकारें, चाहे दार्शनिक अबतक उसे शांति नहीं मिल पाई है। इसका मूल कारण है आर्थिक वेश में हम उसे वीतराग भावना कहें। इसी शांति की शोध में मनुष्य वैषभ्य । आज के विज्ञान से लदे भोतिकवादी युग में रोटी-रोजीयुग युग से जन्म-मरण के चक्र में घूमता रहा है। लेकिन आज २० वीं शिक्षा-दीक्षा के जितने भी साधन हैं उन पर मानवसमाज के इने गिने शताब्दि में शांति का क्षेत्र व्यापक एवं जटिल हो गया है। आज व्यक्तियों के उस वर्ग ने कब्जा कर लिया जो कि निर्दयी एवं स्वार्थी व्यक्तिगत शांति के महत्त्व से भी अधिक महत्त्व समाष्टिगत शांति बनकर अपने धन के नशे में मदमाता है। दूसरी ओर अधिकांश ऐसे (विश्वशांति) का है। इस सामूहिक शांति की प्राप्ति के लिए मानव ने व्यक्तियों का वर्ग है जो गरीबी में पल रहा है। धन और श्रम के इस अनेक साधन ढूंढ निकाले । विभिन्न वादों के विवादों का प्रतिवाद भी भयानक अन्तर और विरोध ने मानव के बीज में दीवाल खड़ी कर दी PA %3 IFE BEE अ48302R ShivSOARD S Jain Education Intemational 2010_03 177 For private & Personal use only www.jainelibrary.org

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