Book Title: Tattvartha Sutram
Author(s): Umaswami, Umaswati, Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
View full book text ________________
| साक्षिणः
श्रीतवार्थ-|| १७७ समणिं अवगयवेयं हरि० । , मणुस्से णं भंते मणु० ॥११॥ २८५ कइविहा णं भंते देवा
, भवणवइवाणमंतर० १८८ सोहम्मि विमाणाणं
, सपरिग्गहेयराणं
, पलिओवमाइसमया० १८८ एएण कमेण भवे
, साहिअपलिआ.
, एएण कमेण १९२ सीयालीससहस्सा १९३ एकारसेकवीसा
कोडाकोडी सणंतरं २५४ ओरालियसरीर०
immmmmmmmmmm
२५८ उच्चालियंमि पाए , न य तस्स तनिमित्तो , अपमत्तसंजयाणं
जे उपमत्ता समणा. , पढमे समए बद्धं २६१. दवं सत्थग्गिविसं २७२ चउहिं ठाणेहिं २७७ भुतशीलविनय २८२ ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः २९९ माता भूत्वा दुहिता ३०७ हत्थपायपलिच्छिणं
चित्तमित्तिं न निज्झाए ३१० जोगो विरियं थामो ३११ मनसा वाचा कायेन
३१२ वर्ष देव! कुणालायां
, क्रियाकारकभेदेन ३१.६ जा य सच्चा न बत्तबा ,सद्भावदोषवद्वाक्यं , गर्हितवचनं चासत् , न नर्मयुक्तं वचनं ,, अन्यथा संज्ञिनो वाक्यं ३१९ सोलस चेव सहस्सा ३२५ भूमनिन्दाप्रशंसासु ३२६ निःशल्यस्यैव पुनः ३३२ सणवयसामइयं ३३८ चत्तारि विचित्ताई ३४० संसयकरणं संका |, पयमक्खरं च एकंपि
॥११॥
Jan Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 556