Book Title: Tattvartha Sutram
Author(s): Umaswami, Umaswati, Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीत गर्थ
हरि० ॥ १४ ॥
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४२७ अप्रतिपाति ध्यायन् आर्द्राम्बराशुशोषव आयुष्कस्यापि विरलि दंडकपाटकरेचक ० विकसनसंकोचन ० शेषे सयोगितायाः स ततो योगनिरोधं समये समये कर्मा० नोकर्मणो हि वीर्यं बादरतन्वा पूर्व सत्यप्यनन्तवीर्य ० सति बादरे च योगे शेषस्य काययोगस्य तमपि स योगं सूक्ष्मं ध्याने दृढार्पिते पर० ध्यानार्पितोपकरण
स ततस्तेन ध्यानेन योगाभावाद समय ० लेश्याक्रियानिरोधो सवादरपर्याप्ता ० मनुजायुष्कं च स स ततो देहत्रयतो ० ४९९ यदर्थव्यंजने काय० संक्रान्तिरर्थादर्थं यत् अर्थादिव पृथक्त्वेन
४९९ अविकंपमनस्त्वेन सूक्ष्मकायक्रियां रुंधन् ५०५ ध्यानं ह्यभिसंधानं नृसुरगतिप्रायोग्ये दुर्भगदुःस्वरसुखर० प्रकृतय एता द्विचरम० तैजसशरीरबन्धोऽपि
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| ५०१ पुलाए णं भंते ! ५०८ पउसे पुच्छा
पडिसेवणाकुसीले ५१० सङ्घागासपएसग्गं सवयं सम्मतं
वाणि जमेस
सवेविय सहओ एएण कारणेणं
५१२ तस्य हि तस्मिन् समये चित्रं चित्रपटनिर्भ
| ५१३ वीसमिऊण नियंठो चरमे णाणावरणं
| ५२३ समणि अवगयवेयं
साक्षिणः
॥ १४ ॥
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