Book Title: Tattvartha Sutram
Author(s): Umaswami, Umaswati, Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
View full book text ________________
साक्षिणः
श्रीतच्चार्थ-18|३४१कंवा अमनदसण० हरि०
, णो इहलोयट्ठयाए ४५६ ॥ १२॥
३६१ जंणय दुहियं णय दु० ३६९ कोहोय माणो य
, जं अइदुक्खं लोए ३८७ " जीवस्तु कर्मबन्धन ,, संसारानादित्वात् | ३७१. इति कर्मणः प्रकृतयः
३७२ तासामेव विपाक |, तेषां पूर्वोक्तानां
,, प्रत्येकमात्मदेशाः | ३७१ मिथ्यात्वस्य ह्युदये , सम्यक्त्वगुणेन ३८०
यत् सर्वथापि तत्र
Santmulgia-nigimaignmu
ननु कोद्रवान् मद. मिच्छत्ततिमिरपच्छा. मिच्छादिट्ठी जीवो पयमक्खरं च इकं अर्हत्प्रोक्तं गणधर० श्रुतकेवली च तस्मात्
तं मिच्छत्तं जमस० ३८० संयोजनोदयश्चेत्
प्रक्षीणे तर्हि सम्यक्त्वे
संयोजयन्ति यन्नर० ३८१ आवृण्वन्ति प्रत्या०
प्रत्याख्यानावरण सर्व प्रत्याख्यानं नासंतस्सावरणं
उदए विरइपरिणई श्रावकधर्मो द्वादश. संज्वलयति यति
कषायसहवर्तित्वात् ३८७ स्वानुरूपाश्रवोपात्तं
,, दुर्व्याख्यानो गरी. ३८९ तुल्लं वित्थडबहुअं ३९५ निच्छयओ सबगुरुं ३१८ आहारसरीरिंदिय ४०९ तासामेव विपाक.
संहननं संस्थान
प्रकृतय एताः ४११ मूलप्रकृत्य मिनाः
शिथिलयति दृढं बद्धं
tamanian
m
ments"
For Personal Private Use Only
www.ebay.org
Loading... Page Navigation 1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 556