Book Title: Tattvartha Sutra Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 5
________________ नू तत्वार्थ सूत्र के होश असे स्वामीकुंयूचेतो सामान्य करिकेतोजीवकै दोइ है। विशेषकाः रिकगतिके अनुवादकरिनरकगतिविषैकाईजीन के सम्पक्क होयतोसमस्त पृथ्वी विषैनारकी निकैं पर्याप्त अवस्थाविषैऊपशमिकक्षायोपशमिक सम्प कोई है| नरप्रथमपृथ्वी विषेपर्याप्तिप्रपर्याप्तिकजीवनिकै क्षायिकताये पशमिक होइहै। द्वितीयादिप्रदीविफेंस पर्याप्तिप्रचस्थाविषैसम्पक्तनही होइटै तिर्यचचिषैसम्पत्कहोतोऔयामिकपर्याप्तिव्यपर्याप्तिदोऊव स्थाभिहाइपरंतु अपर्यावस्थामैं भोगनू मिके तिर्यञ्चीकै सम्पत्त होइ कर्मभूमिकेति चिके पर्याप्तअवस्थामै उपशमक्षयोपशम होइक्षाइकन टी | ही होश जर तिर्येच एक क्षायिक सम्पत्तदो इही नहीं अखपात्तयोपा सम्पत्तपयप्ति अवस्थाहमिहोश|वऊरिमनुष्यगत्तिविषे क्षायिक क्षायो यशमिक दोयसम्पत्कतोप्यतिपयप्तिदोऊअवस्थाविषै हो डायर JUPage Navigation
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