Book Title: Tattvartha Sara
Author(s): Amitsagar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 2
________________ तत्त्वार्थसार आचार्य उमास्वामी का 'तत्त्वार्थसूत्र' जिनशासन का महान् ग्रन्थ है। जैन जगत में यह इतना लोकप्रिय हुआ कि इस पर वृत्ति, वार्तिक एवं भाष्य के रूप में लगभग एक दर्जन टीका-ग्रन्थ लिखे गये हैं। इनमें प्रमुख हैंस्वामी समन्तभद्र कृत 'गन्धहस्तिमहाभाष्य', आचार्य पूज्यपाद कृत 'सर्वार्थसिद्धि', भट्ट अकलंकदेव का 'तत्त्वार्थराजवार्तिक', आचार्य श्रुतसागर सूरि रचित 'तत्त्वार्थवृत्ति', स्वामी विद्यानन्दि प्रणीत 'तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार'। इसी परम्परा में आध्यात्मिक आचार्य अमृतचन्द्र सूरि (10वीं शती) की प्रस्तुत कृति 'तत्त्वार्थसार' है जो आ. उमास्वामी के 'तत्त्वार्थसूत्र' की शैली में लिखा गया संस्कृत श्लोकबद्ध स्वतन्त्र ग्रन्थ है। इसका स्वतन्त्र वैशिष्ट्य इसलिए भी है कि कृतिकार ने इसमें कई स्थानों पर तत्त्वों के विवेचन में नवीन दृष्टि प्रदान की है, और इसके लिए उन्होंने 'तत्त्वार्थराजवार्तिक' का विशेष आश्रय लिया है। सम्पूर्ण ग्रन्थ नौ अधिकारों में निबद्ध है। पहले आठ अधिकारों में जीव से लेकर मोक्षतत्त्व की निरूपणा है। नौवाँ अधिकार 'उपसंहार' है, जिसमें सातों तत्त्वों को जानने के उपाय से लेकर निश्चय और व्यवहार मोक्षमार्ग के स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह ग्रन्थ पचास वर्ष पहले 'गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला' वाराणसी से पं. पन्नालाल साहित्याचार्य के हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हुआ था। ग्रन्थ के महत्त्व को देखते हुए मुनिश्री अमितसागर जी ने प्रस्तुत ग्रन्थ की भावानुगामिनी विस्तृत हिन्दी टीका लिखकर कृतिकार के मूल भाव को वर्तमान परिवेश देने का प्रयास किया है। आशा है, जैनधर्म-दर्शन के अध्येताओं और शोधार्थियों को यह ग्रन्थ अधिक उपयोगी सिद्ध होगा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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