Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 3
________________ बहो सन्पुष्पना वचनामृत, मुद्रा अने सत्समागम । सुपुप्त चतनने नागृत करनार, पडती वृत्ति स्थिर राखनार, दर्शनमात्रयी पण निर्दोप, अपूर्व स्वभावने प्रेरख, स्वरूप प्रतीति, अप्रमत्त सयम भने पूर्ण वीतराग निर्विकल्प स्वभावना कारणमूत, छेले अयोगी स्वभाव प्रगट करी अनत अव्यावाघ स्वरूपमा स्थिति करावनार। विकाळ जयवत पों! ॐ शाति शाति शाति -श्रीमद् रामचन्द्र

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