Book Title: Tattvabindu
Author(s): Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 10
________________ योगनिष्ठमुनिबुद्धिसागरेण. ॥ तत्त्वबिन्दुग्रन्थः प्रारभ्यते ॥ प्रणिपत्य परात्मानं, धर्मदेवं गुरुंगिरं ॥ शास्त्रोदधेः समुद्धृत्य, तत्त्वबिन्दु विरच्यते ॥१॥ • १. पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय ए चार प्रत्येकनां स्थानक ३५० जाणवां. ३५० ने पांचवर्णे गुणवा. जे सरदाळो आवे तेने बेगंधयी . . गणवो. फेर पांचरसथी गुणाकार करवो. फेर आठ स्पर्शयी ... . गुणाकार करवो. अने फेर पांच संस्थानथी गणवा. ते सर्व गणतां सातलाख योनि थाय. प्रत्येक वनस्पतिना ५०० स्थानक. साधारण वनस्पतिकायनां ७०० स्यानक. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय स्थानक १०० प्रत्येकनां जाणवां. देवता, नारकी, तिर्यचपंचेंद्रिय प्रत्येकनांस्थानक २०० जाणवां. __मनुष्य योनि चउदलाखनां उत्पत्ति स्थानक ७०० जाणवां. २ जेनो वर्ण, गंध, रस, अने स्पर्श एक होय तेनी एक योनि जाणवी.

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