Book Title: Tattva Muktakalap
Author(s): D Srinivasachar, S Narasimhachar
Publisher: Mysore Government Branch
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665
पुटम्
प्रमाणवचनम्
पुटम् 328 480
60
5
339
.... 339
63
339 167
274 524 445
328
प्रमाणवचनम् नित्यस्य संमृति नित्यं जगदिति नित्यं तत्कार्यतः नित्यं त्रिलोके नित्यं भ्राम्यति नित्यं विभुं सर्व नित्यत्वं चेष्यते नित्यावस्थितान्य नित्यत्वेपि निधानं न नियतं महता नियती रागविद्ये नियमादात्महेतूत्थ निरन्तरत्वे निरंशस्य च निरंशा प्रकृति निराधारा निरुद्धादनिरुद्धा निर्मलत्वात्प्रकाशकं निवृत्तिरूपता निर्वाणमय एवा निषेधाय ततः निष्कमणं प्रवे निष्के तु सत्य निष्पत्तिदर्शनात् निष्पन्नो नास्ति निष्पादितक्रिये निस्स्वभावा अमी
423 न पत्र का चित् 214 | नीरन्ध्रेऽप्यम्बु
नैकरूपा नैरात्म्यवाद
नैरात्म्येनात्र 209
पक्षधर्मस्तदं
पङ्गन्धवदुभयो 369 | पङ्कलिप्तं तृणं 302 | पञ्च चेन्द्रिय 137 पञ्च धर्मा भवे 150 पञ्चभूतात्मकं
पञ्चभ्योद्वा 191 पञ्चमहा 302 पञ्चम्यामाहुता 212 | पञ्चवृत्तिर्मनो 585 पञ्चेन्द्रियाणीत्यादि 423 पटवच्च
22 पदार्थव्यतिरिक्त 370 परमाणोर 129 परमात्मनः .319 परमार्थमना
परस्परविरुद्धा 564 परिणामात्
परिणामानि
| परिणामत 320 परिणामताप .... परिणामैक्या .... 329/ परिव्राटकामुकशुनां
253 612 582 189 445 160 222
374
191
305
279
637 195 425 313 290 290 285 134 54
328
196
....
43
SARVARTHA.

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