Book Title: Tattva Muktakalap
Author(s): D Srinivasachar, S Narasimhachar
Publisher: Mysore Government Branch
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पुटम्
पुटम्
प्रमाणवचनम् त्रिविधमनुमानं त्रिविधोऽयमहङ्कार त्रिवृतमेकैका त्रीणि रूपाणी त्रीण्येव लिङ्गानि तीर्णी हि तदा त्रुटिभूते च तृतीया तत्कृता तेषामन्द्रियक तैजसं न यतेः तैजसं शुध्यते तैजसं शोधकैः तैजसानान्द्रियाणि
286 464 572
99 191 167 163 217 221 398
317
प्रमाणवचनम् 116 | देशकालाकार 463 | देवा वैकारिका दश 180 | देवी गुणमयी 1741 । द्रव्यक्रियागुणा 366 | द्रष्टव्यं दर्श
द्रव्यर्थिकनया
| द्रव्याश्रया निर्गुणा ___405 | द्रव्यस्य समाहार
99 565 | द्वयोरयुगप 565 द्वयाश्रितं 565 द्वाभ्यामेवाणुभ्यां 464 | द्विविधाः क्षणिका
द्वेधापि क्षणभङ्ग
| द्वे सत्ये समुपा 464 275 | धर्मत्वेन प्रतीयन्ते 149 | धर्मस्य कस्यचिदव 535 | धर्माधर्मी तथा जीवः 202 | धर्मोकारशक्तीनां 471| धर्मो ज्ञानं विराग 129 | ध्वंसनाम्नः पदार्थस्य 485 | धाता यथापूर्व 110| धारणकर्षणो 197
| ध्यायतेध्यासिता 120 धियं निवेश्य
49 धियो नीलादि 141 | ध्रुवं जन्ममृ
251 .... 344
324 .... 192
द
दर्शनस्पर्शनाभ्यां दशमे पुरुषे दारुण्याग्नर्यथा दिक्कालावाकाशादि दिग्देशकालेष्वस्ताति: दिग्विभागो निरंश दिवीव चक्षुराततं दुःखाज्ञान दूरासन्नार्थयो दृश्यते तु दृश्यते स्पृश्यते दृश्यमेव हि लोक दृष्टानुश्रविक दृष्टे तस्मिन्नदृष्टेऽपि देवानां पूरयोध्या
67 364 150
48 120 375 160 239 240 178 ___79
256
57
..
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