Book Title: Tattva Bindu
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३)
arrange
३ जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष, धर्म, अधर्म, हेय, ज्ञेय, उपादेय, निश्चय, व्यवहार, उत्सर्ग, अपवाद, आश्रव, परिश्रव, अतिचार, अनाचार, अतिक्रम, व्यतिक्रम, इत्यादि, सांभळ्याविना शास्त्ररहस्य समजाय नहि.
४ सुस्थान, सुग्राम, सुजाति, सुभ्रात, सुतात, सुमाता, सुकुल, सुबल, सुखी, सुपुत्र सुपात्र, सुदान, सुमान, सुरूप, सुविधा, सुदेव, सुगुरू, सुधर्म, सुदेशा दिनीयोगवाइ, पुण्यविना प्राप्त थती नथी.
५ सुमति, शीलवंत, संतोषी, सत्संगी, स्वजनसाचाबोला, सत्पुरुष, सुलक्षणा, सुलज्जावंत, गंभीर, गुणवंत, गुणज्ञ, एवा गुणवंत पुरुषनी संगति करतां धर्म पामी शकाय.
६ चोर, छलग्राही, अधर्मी, अधम, अविनेय, अधिकबोलो, अनाचारी, अन्यायी, अधीर, अधुरा, कुलक्षणा, कुबोला, कुपात्र, कुशील, खुशामती, कुलखंपण, तुच्छमतिवाळा जीवोनी संगति करवी नहि.
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 202