Book Title: Tattva Bindu
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org योगनिष्ठमुनिबुद्धिसागरेण. ॥ तत्त्वविन्दुग्रन्थः प्रारभ्यते ॥ प्रणिपत्य परात्मानं, धर्मदेव गुरुंगिरं ॥ शास्त्रोदधेः समुद्धृत्य तत्त्वबिन्दु विरच्यते ॥ १ ॥ १ पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय ए चार प्रत्येकना स्थानक ३५० जाणवतं. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० ने पांचवर्णे गुणवा. जे सरदाळो आवे तेने बेगंधथी गणवो. फेर पांचरसथी गुणाकार करवो. फेर आठ स्पर्शथी गुणाकार करवो. अने फेर पांच संस्थानथी गणवा. ते सर्व गणतां सातलाख योनि थाय. प्रत्येक वनस्पतिना ५०० स्थानक. साधारण वनस्पतिकायनां ७०० स्थानक. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय स्थानक १०० प्रत्येकनां जाणवतं. देवता, नारकी, तिर्यचपंचेंद्रिय प्रत्येकनां स्थानक २०० जाणवां. मनुष्य योनि चउदलाखनां उत्पत्ति स्थानक ७०० जाणवां. जेनो वर्ण, गंध, रस, अने स्पर्श एक होय तेनी एक योनि जाणवी. For Private And Personal Use Only

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