Book Title: Tapagaccha Bruhad Paushalik Shakha Author(s): Shivprasad Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf View full book textPage 2
________________ ३२६ शिवप्रसाद Nirgrantha जगच्चन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि क्षेमकीर्ति [वि. सं. १३३२ / ई. स. १२७६ में बृहद्कल्पसूत्रवृत्ति के रचनाकारा जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, बृहद् पौषालिक शाखा की एक पट्टावली' प्राप्त होती है । इसमें रचनाकार द्वारा विजयचन्द्रसूरि से लेकर धनरत्नसूरि एवं उनके शिष्यों तक की दी गयी गुरु-परम्परा इस प्रकार विजयचन्द्रसूरि वज्रसेन क्षेमकीर्तिसूरि पद्मचन्द्र पद्मचन्द्र हेमकलशसूरि नयप्रभ रत्नाकरसूरि रत्नप्रभसूरि मुनिशेखरसूरि धर्मदेवसूरि ज्ञानचन्द्रसूरि अभयसिंहसूरि जयतिलकसूरि रत्नसागर रत्नसिंहसूरि धर्मशेखरसूरि माणिक्यसूरि जयशेखरसूरि - हेमसुन्दर उदयवल्लभसूरि उदयधर्मगणि शिवसुन्दरगणि For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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