Book Title: Tapagaccha Bruhad Paushalik Shakha
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Jain Education International Vol. III-1997-2002 रत्नसिंहसूरि वि० सं० १४८३-१५१७ प्रतिमालेख उदयमंडन [वि० सं० १५१४में उत्तराध्ययनसूत्र अवचूरि के प्रतिलिपिकार] उदयधर्म वि० सं० १५०७में वाक्यप्रकाश औक्तिक के रचनाकार रत्नसिंहसूरिशिष्य उदयवल्लभसूरि माणिक्यसुन्दरगणि चारित्रसुन्दरगणि दयासिंहगणि महत्तराधर्मलक्ष्मी वि० सं० १५१६में वि. सं. १५२०में वि. सं. १५०१में वि० सं० १४८४या इनके पठनार्थ वि. सं. जम्बूरास के कर्ता लगभग क्षेत्रसमास- भवभावनासूत्रबाला-१४८७में शीलदूतकाव्य और १५१६में उत्तराध्ययनसूत्र बालावबोध के वबोध के रचनाकार वि. सं. १४८७ में की प्रतिलिपि की गयी कर्ता, वि. सं.१५१९ कुमारपालचरित के २१ प्रतिमालेख रचनाकार, वि. सं. १५२३ प्रतिमालेख रत्लचूलामहत्तरा प्रवतिनी विवेक श्री For Private & Personal Use Only ज्ञानसागरसूरि [विमलनाथचरित्र तथा अन्य कृतियों के रचनाकार, वि. सं. १५२२-५३ प्रतिमालेख] तपागच्छ - बृहद्पौषालिक शाखा उदयधर्म माणिक्यरत्न वि. सं. १५२० प्रतिमालेख उदयसागरसूरि वि० सं० १५३२-१५५३ प्रतिमालेख मंगलधर्म शीलसागर लब्धिसागर वि० सं० १५५६ में ध्वजभुजंगकुमार चौपाई, वि० सं० १५५७ में श्रीपालकथा आदि के कर्ता, वि. सं. १५५१-८८ प्रतिमालेख (वि.सं. १५२५ में मंगलकलशरास के रचनाकार) डूंगरकवि ३३७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17