Book Title: Tapagaccha Bruhad Paushalik Shakha
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ ३३४ ७. जुहारमित्रसज्झाय ८. गिरनारतीर्थोद्धाररास ९. यशोधरनृपचौपाई [वि. सं. १०. रूपचन्द्रकंवररास [वि. सं. Jain Education International शिवप्रसाद १७. पार्श्वनाथस्तवन १८. आत्मबोधकुलक १९. सारस्वतव्याकरणवृत्ति २०. बृहद्पोषालिकपट्टावली १६१८ / ई. स. १५५२] १६३७ / ई. स. १५७१] ११. गिरनारतीर्थोद्धारप्रबन्ध १२. प्रभावती ( उदयन ) रास [वि. सं. १६४० / ई. स. १५७४] १६४६ / ई. स. १५९० ] १३. सुरसुन्दरीरास [वि. सं. १४. नलदमयन्तीचरित्र [ वि. सं. १६६५ / ई. स. १६०९] १५. शीलशिक्षारास [वि. सं. १६६९ / ई. स. १६१३] १६. शंखेश्वरपार्श्वस्तवन नयसुन्दर की शिष्या साध्वी हेमश्री" द्वारा रचित कनकावतीआख्यान [ रचनाकाल वि. सं. १६४४/ ई. स. १५८८] और मौनएकादशीस्तुतिथोयसंग्रह नामक कृतियाँ मिलती हैं । Nirgrantha कर्मविवरणरास के रचनाकार लावण्यदेव भी तपागच्छ की इसी शाखा से सम्बद्ध थे। अपनी कृति के अन्त में उन्होंने प्रशस्ति के अन्तर्गत गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : धनरत्नसूरि उदयधर्म जयदेव लावण्यदेव [कर्मविवरणरास के कर्त्ता ] धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमंदिर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु वि. सं. १६१२ / ई. स. १५५६ में रचित देवकुमारचरित्र के कर्त्ता ने स्वयं को भानुमंदिर शिष्य *" के रूप में सूचित किया है : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17