Book Title: Tapagaccha Bruhad Paushalik Shakha
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf

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Page 9
________________ Vol. 11-1997-2002 तपागच्छ - बृहपौषालिक शाखा ३३३ धनरत्नसूरि अमररत्नसूरि देवरत्नसूरि जयरत्न राजसुन्दर भुवनकीर्ति पद्मसुन्दर [वि. सं. १७०७-३४ के मध्य रत्नकीर्ति भगवतीसूत्रबालावबोध के कर्ता] चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार नयसिंहगणि४ भी इसी गच्छ के थे। अपनी कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपने गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार है: रत्नसिंहसूरि उदयवल्लभसूरि ज्ञानसागरसूरि उदयसागरसूरि लब्धिसागरसूरि धनरत्नसूरि मुनिसिंहगणि नयसिंहगणि [वि. सं. १६२५ के आस-पास चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार नयसिंहसूरि द्वारा रचित अन्य कोई कति नहीं मिलती । धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमेरुमणि हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य नयसुन्दर७५ अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे । इनके द्वारा रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं : १. रूपरत्नमाला २. शत्रुजयोद्धारस्तवन ३. नवसिद्धिस्तवन ४. सीमंधरवीनतीस्तवन ५. शजयउद्धार [वि. सं. १६३८ / ई. स. १५७२] ६. स्थूलिभद्रएकवीसो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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