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७. जुहारमित्रसज्झाय
८. गिरनारतीर्थोद्धाररास
९. यशोधरनृपचौपाई [वि. सं.
१०. रूपचन्द्रकंवररास [वि. सं.
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शिवप्रसाद
१७. पार्श्वनाथस्तवन
१८. आत्मबोधकुलक
१९. सारस्वतव्याकरणवृत्ति
२०. बृहद्पोषालिकपट्टावली
१६१८ / ई. स. १५५२]
१६३७ / ई. स. १५७१]
११. गिरनारतीर्थोद्धारप्रबन्ध
१२. प्रभावती ( उदयन ) रास [वि. सं. १६४० / ई. स. १५७४] १६४६ / ई. स. १५९० ]
१३. सुरसुन्दरीरास [वि. सं.
१४. नलदमयन्तीचरित्र [ वि. सं. १६६५ / ई. स. १६०९]
१५. शीलशिक्षारास [वि. सं. १६६९ / ई. स. १६१३]
१६. शंखेश्वरपार्श्वस्तवन
नयसुन्दर की शिष्या साध्वी हेमश्री" द्वारा रचित कनकावतीआख्यान [ रचनाकाल वि. सं. १६४४/ ई. स. १५८८] और मौनएकादशीस्तुतिथोयसंग्रह नामक कृतियाँ मिलती हैं ।
Nirgrantha
कर्मविवरणरास के रचनाकार लावण्यदेव भी तपागच्छ की इसी शाखा से सम्बद्ध थे। अपनी कृति के अन्त में उन्होंने प्रशस्ति के अन्तर्गत गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है :
धनरत्नसूरि
उदयधर्म
जयदेव
लावण्यदेव [कर्मविवरणरास के कर्त्ता ]
धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमंदिर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु वि. सं. १६१२ / ई. स. १५५६ में रचित देवकुमारचरित्र के कर्त्ता ने स्वयं को भानुमंदिर शिष्य *" के रूप में सूचित किया है :
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