Book Title: Tao Upnishad Part 02 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House Puna View full book textPage 9
________________ 97 115 135 23. सफलता के खतरे, अहंकार की पीड़ा और स्वर्ग का द्वार 24. शरीर व आत्मा की एकता, ताओ की प्राण-साधना व अविकारी स्थिति 25. उद्देश्य-मुक्त जीवन, आमंत्रण भरा भाव व नमनीय मेधा 26. ताओ की अनुपस्थित उपस्थिति 27. अनस्तित्व और खालीपन है आधार सब का 28. ऐंद्रिक भूख की नहीं-नाभि-केंद्र की आध्यात्मिक भूख की फिक्र 29. ताओ की साधना—योग के संदर्भ में 30. एक ही सिक्के के दो पहलू ः सम्मान व अपमान, लोभ व भय 31. अहंकार-शून्य व्यक्ति ही शासक होने योग्य 32. अदृश्य, अश्राव्य व अस्पर्शनीय ताओ । 33. अक्षय व निराकार, सनातन व शन्यता की प्रतिमर्ति 34. संत की पहचानः सजग व अनिर्णीत, अहंशून्य व लीलामय 35. विश्रांति से समता व मध्य मार्ग से मुक्ति 36. तटस्थ प्रतीक्षा, अस्मिता-विसर्जन व अनेकता में एकता 37. निष्क्रियता, नियति व शाश्वत नियम में वापसी 38. ताओ का द्वार-सहिष्णुता व निष्पक्षता 39. श्रेष्ठ शासक कौन?—जो परमात्मा जैसा हो 40. ताओ के पतन पर सिद्धांतों का जन्म 41. सिद्धांत व आचरण में नहीं, सरल-सहज स्वभाव में जीना 42. आध्यात्मिक वासना का त्याग व सरल स्व का उदघाटन 43. धर्म है-स्वयं जैसा हो जाना 151 167 183 199 223 241 259 277 295 311 331 355 373Page Navigation
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