Book Title: Tao Upnishad Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 14
________________ ताओ उपनिषद भाग २ इसलिए पूरब ने इतिहास नहीं लिखा। पश्चिम ने इतिहास लिखा है। क्योंकि पश्चिम मानता है कि जो घटना एक बार घटी है, वह दुबारा नहीं घटेगी, अनरिपीटेबल है। प्रत्येक घटना अद्वितीय है। इसलिए जीसस का जन्म अद्वितीय है, दुबारा नहीं होगा। और जीसस पुनरुक्त नहीं होंगे। इसलिए सारा इतिहास जीसस से हिसाब रखता है। जीसस के पहले और जीसस के बाद, सारी दुनिया में इतिहास को हम नापते हैं। ऐसा हम राम के साथ नहीं नाप सकते। हम ऐसा नहीं कह सकते कि राम के पूर्व और राम के बाद। क्योंकि पहली तो बात यह है कि हमें यह भी पक्का नहीं कि राम कब पैदा हुए। इसका यह अर्थ नहीं है कि हम, जो राम का पूरा जीवन बचा सकते थे, वे उनके जन्म की तिथि नहीं बचा सकते थे। यह बहुत समझने जैसी बात है। पूरब ने कभी इतिहास लिखना नहीं चाहा, क्योंकि पूरब की दृष्टि यह है कि कोई भी चीज अद्वितीय नहीं है, सभी चीजें वर्तुल में वापस-वापस लौट आती हैं। राम हर युग में होते रहे और हर युग में होते रहेंगे। नाम बदल जाए, रूप बदल जाए, लेकिन वह जो मौलिक घटना है, वह नहीं बदलती। वह पुनरुक्त होती रहती है। इसलिए एक बहुत मीठी कथा है और वह यह कि वाल्मीकि ने राम के जन्म के पहले कथा लिखी; पीछे राम हुए। ऐसा दुनिया में कहीं भी सोचा भी नहीं जा सकता। राम हुए बाद में, वाल्मीकि ने कथा लिखी पहले। क्योंकि राम का होना, पूरब की दृष्टि में, एक वर्तुलाकार घटना है। जैसे एक चाक घूमता है, तो उस चाक में जो हिस्सा अभी ऊपर था, अभी नीचे चला गया, फिर ऊपर आ जाएगा, फिर ऊपर आता रहेगा। जैन कहते हैं कि हर कल्प में उनके चौबीस तीर्थंकर होते रहेंगे। नाम बदलेगा, रूप बदलेगा, लेकिन तीर्थंकर के होने की घटना पुनरुक्त होती रहेगी। इसलिए पूरब ने इतिहास नहीं लिखा; पूरब ने पुराण लिखा। पुराण का अर्थ है : वह जो सारभूत है, जो सदा होता रहेगा, बार-बार होता रहेगा। इतिहास का अर्थ है कि जो दुबारा कभी नहीं होगा। अगर जीवन एक वर्तुल में घूम रहा है, तो फिर यह बार-बार हिसाब रखने की जरूरत नहीं कि राम कब पैदा होते हैं और कब मर जाते हैं। राम के होने का क्या अर्थ है, इतना ही याद रखना काफी है। राम का सारभूत व्यक्तित्व क्या है, इतना ही याद रखना काफी है। फिर ये बातें गौण हैं कि शरीर कब श्वास लेना शुरू करता है और कब बंद कर देता है। ये बातें अर्थपूर्ण नहीं हैं। हम उन्हीं चीजों को याद रखने की कोशिश करते हैं, जो दुबारा नहीं दुहरती हैं। जो रोज ही दुहरने वाली हैं, उनको याद रखने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। तो पूरब की समझ जीवन को एक वर्तुलाकार देखने की है। और यह समझ महत्वपूर्ण भी है। क्योंकि इस जगत में जितनी गतियां हैं, सभी वर्तुलाकार हैं। गति मात्र वर्तुल में है—चाहे चांद-तारे घूम रहे हों, चाहे पृथ्वी घूम रही हो, चाहे मौसम घूम रहा हो, चाहे व्यक्ति का जीवन घूम रहा हो-इस जगत में ऐसी कोई भी गति नहीं है, जो सीधी हो। इस जगत में जहां भी गति है, वहां वर्तुल अनिवार्य है। तो अकेला जीवन के संबंध में अपवाद नहीं होगा। लेकिन वर्तुल का अपना तर्क है; और वर्तुल का अपना रहस्य है। और वह यह है कि जहां से हम शुरू करते हैं, वहीं हम वापस पहुंच जाते हैं। और जब हमारा मन होता है कि हम और जोर से आगे बढ़े चले जाएं, तो हमें पता नहीं होता कि हमारे आगे बढ़े जाने में एक जगह से हमने पीछे लौटना शुरू कर दिया है। एक लिहाज से जवानी बुढ़ापे के बहुत विपरीत है। लेकिन एक अर्थ में बहुत विपरीत नहीं है, क्योंकि जवानी सिर्फ बुढ़ापे में ही पहुंचती है, और कहीं पहुंचती नहीं। तो जितना आदमी जवान होता जा रहा है, उतना बूढ़ा होता जा रहा है। और यह बात लाओत्से कहता है, 'किसी भरे हुए पात्र को ढोने की कोशिश करने की बजाय उसे अधभरा ही छोड़ देना श्रेयस्कर है।' क्योंकि जब भी कोई चीज भर जाती है, तो अंत आ जाता है। वह कुछ भी हो, अकेला पात्र ही नहीं, पात्र तो केवल विचार के लिए है। कोई भी चीज जब भर जाती है, तो अंत आ जाता है। अगर प्रेम भी भर जाए, तो प्रेम का

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