Book Title: Tali Ek Hath Se Bajti Rahi
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 31
________________ + द मुनि पार्श्वनाथ ध्यान में दृढ़ रहे चार घातिया कर्मों का नाश हो गया और बन गये भगवान तीर्थंकर केवल ज्ञानी- अरहंत । A इन्द्र अपने देवता लोगों के साथ चल दिये भगवान पार्श्वनाथ का केवलज्ञान कल्याणक मनाने के लिए और इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने समवशरण बना डाला - समवशरण यानि सभा मण्डप-बीच में भगवान, चारों ओर १२ कोठों में अलग अलग देव, मनुष्य, तिर्यच्च, स्त्री आदि यहां जीवों में बैर विरोध नही, भगवान के दर्शन चारों ओर से, रात दिन का भेद नहीं । भगवान पार्श्वनाथ समवधारण में उनकी दिव्य ध्वनि खिर रही है। सब बैठे अपनी अपनी भाषा में समझ रहे हैं। वहीं परबैठा है | देवों के कोठे में वही सवर देव । + + R है 144 29 और संवरदेव भाग गया Callig अहाहा! कितना सुन्दर उपदेश है। मैं कितने जन्मों से इनसे बैर कर कर के पापबंध करता रहा 'नाना प्रकार के दुख सहला रहा। और इधर थेबिल्कुल शांत बने रहे। परिणाम स्वरूप ये आज भगवान बने हुए विराजमान हैं । क्या मैं भी ऐसा बन सकता हूं? क्यों नहीं | बैर भाव छोड़ दूं । सही विश्वास बना लूं। मैं क्या हूं? मेरा क्या स्वरूप है ? इसकी सच्ची श्रद्धा कर लूं। इसका जैसा ज्ञान कर लूं और इसी को प्राप्त करने में लग जाऊं इस भव मे न सही अगले भवों में मुनि बन कर मैं अपना कल्याण अवश्य कर लूंगा भगवान पार्श्वनाथ का विहार होने लगा। जहां जाते नया समवशरण बन जाता। मार्ग में सब प्रबन्ध देवों का । आगे आगे देवता लोग भूमि साफ करते हुए, गंधोदक छिड़कते हुए पुष्पवृष्टि करते हुए चल रहे हैं। सबके आगे धर्म चक्र चल रहा है. आकाश में गमन हो रहा है, देवता लोग गा रहे हैं नाच रहे हैं। बजा रहे हैं दिव्य बाजे

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