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इस प्रकार विहार करते हुए अन्त में पहुंच गये सम्मेद शिखर पर । बैठ गये ध्यान मग्न । शेष | बचे चार अघातिया कर्म (आयु, नाम, गोत्र, वेदनीय) भी भाग गये । चार घातिया कर्म (ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी मोहनीय, अन्तराय) पहले ही नष्ट हो गये थे। तभी तो उन्हें केवल ज्ञान हुआ था।
आगे क्या हुआ । शरीर. तो कपूर की तरह उड़ गया हाँ बचे रह गये केश और नाखून | अग्निकुमार देवों ने अपने मुकुट से अग्नि जलाई और भगवान के नाखून और केशों को जला डाला | उससे बनी भस्म को सब देवों ने अपने मस्तक पर लगाया ।
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और भगवान आत्माउसे मिल गई मुक्ति, सब कंटों से, सब कर्मों सेद्रव्यकर्म, भावकर्म नो कर्म से । अब वह हो गये पूर्ण निर्विकार, पूर्ण शुद्ध, पूर्ण ज्ञानी व पूर्ण सुखी । जा पहुंचे मोक्ष मेंजहां से कभी नहीं लौटेंगे संसार में, कभी नहीं लेंगे अवतार, कभी नहीं होंगे अशुद्ध। और इधर इन्द्रादिक आ पहुंचे भगवान का निर्वाण कल्याणक मनाने....
आओ हम भी भगवान बनें।
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