Book Title: Tali Ek Hath Se Bajti Rahi
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CHIE S7 ANIRANIA அளித் Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय भगवान पार्श्वनाथ जन जन के श्रद्धाभाजन हैं। उनका वर्तमान तथा पूर्व भवों का जीवन अलौकिक घटनाओं से भरा हुआ है। मरुभूमि के प्रति कमठ का एक पक्षीय वैर देख कर आंखों के सामने सौजन्य और दौर्जन्य का सच्चा चित्र उपस्थित हो जाता है। प्रशमगुण के अवतार मरुभूति के जीव को जो आगे चल कर पार्श्वनाथ तीर्थकर बना है। कितना कष्ट दिया? यह देख कर हृदय में कमछ के जीव की दुष्टता और मरुभूमि के जीव की सहिष्णुता का दृष्य सामने आ जाता है। कमठ के जीव ने पूर्वभव तथा वर्तमान भव में भी उसने कितना भयंकर उपसर्ग उन पर किया था। यह पढ़ कर शरीर रोमाञ्चित हो जाता है। अन्त में धरणेन्द्र और पद्यावती के द्वारा जो कि कुमार पार्श्वनाथ के मुखार विन्द से सदुपदेश सुनकर नाग नागनी की पर्याय छोड़ देव-देवी हुए थे। उनके कारण भयंकर उपसर्ग का निवारण हुआ और मुनिराज पार्श्वनाथ केवल ज्ञान प्राप्त कर भगवान बन गये। कमठ का जीव अपने कुकृत्य का प्रायश्चित कर सदा के लिए निबैर हो गया। साहित्य सेवा में सकल कीर्ति का महान योगदान रहा उन्होंने साधु जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग किया। प्रस्तुत कृति पार्श्वनाथ पुराण के आधार पर तैयार की गई है। जैन चित्र कथा के माध्यम से शिक्षाप्रद कहानियां प्रकाशित हो कर आधुनिक पीढ़ी के जीवन निर्माण में सहयोग प्रदान करेंगी। धर्मचंद शास्त्री सम्पादक :- धर्मचंद शास्त्री लेखक : ताली एक हाथ से बजती रही :- डा. मूलचंद जी जैन मु. नगर चित्रकार :- बेनसिंह प्रकाशक :- आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला, गोधा सदन अलसी सर हाऊस संसार चंद रोड जयपुर राजस्थान मुद्रक : सैनानी ऑफसेट फोन : 2282885, निवास 2272796 मूल्य 12/ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताली एक हाथ से बजती रही। क्या ये आपने सुना है या देखा है। यदि नहीं तो देखिये कैसे बजती रही एक हाथ से ताली ? कमठ और मरुभूति दो भाई थे - सगे भाई। कई जन्मों तक कमठ का जीव मरुभूति के जीव के प्राण लेता रहा, परन्तु मरुभूति का जीव सदैव शांत बना रहा। एक तरफा बैर- सुनने में बड़ा अटपटा सा लगता है । परन्तु हुआ ऐसा ही । बैर करने वाला गिरता रहा, गिरता रहा भटकता रहा, भटकता रहा। और शान्त रहने वाला चढ़ता रहा, चढ़ता रहा, बढ़ता रहा बढ़ता रहा अपनी मंजिल की ओर। सबने देखा शांत बना रहने वाला एक दिन बन गया भगवान । तो क्या हम भी शांत नहीं बने रह सकते ? चाहे कोई हमें गाली दे, बुरा भला कहे, मार पीटे, यहां तक कि हमारे प्राण भी ले ले। यदि हमने शांत बने रहना सीख लिया, हर परिस्थिति में, तो समझिये हमने जीवन जीने की कला सीख ली। जीवन में तो अजीब आनन्द आने ही लगेगा और कभी न कभी हम भी बन सकेंगे भगवान पार्श्वनाथ की तरह । तो आओ कुछ प्रेरणा लें इस कथा से. और शांत बने रहने की कला को सीखें । बजने दें ताली एक हाथ से............ ताली E एक हाथशरी रेखांकन: बनेसिंह पोदनपुर के राजा का नाम अरविन्द था । वह बड़ा, धर्मात्मा था। उसका मंत्री था विश्व भूति । विश्वभूति की पत्नी थी अनूधर जो बड़ी रूपवती व गुणवती थी। उनके दो पुत्र थे, बड़े का नाम कमठ बड़ा दुराचारी, दुष्ट स्वभाव वाला। छोटे का नाम मरुभूति - बड़ा सज्जन आई मरुभूति की पत्नी दोनों में अटूट प्रेम कमठ स्त्री विसुन्दरी... 0000000 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिनविश्वभूति दर्पण में मुस्वदेखरहेथे मंत्री विश्वभूतिअपने छोटे पुत्रमरुभूतिकोलेकर राजा के पास पहुंचे। कि सिर पर सफेद बाल दिखाई पड़े...... राजन।मैं अब म्त्रीजी, आपका पुत्र बड़ा हैं। यह क्या ? सफेद बाळ! बस अब अपना कल्याण होनहार है।मुझे कोई तो मृत्यु आही गयी समझो। मुझे। करना चाहताहूं। एतराज नहीं है। अपना कल्याण झटपट करना कृपया आपमुझे चाहिए। चूका लो गया। हट्टी दीजिये... मिरा छोटा पुत्र आपकी सेवा कमठ कुछ दिन बादराजा अरविन्द अपने नयेमंत्री मरूभूतिको लेकर व्रजवीरज राजापरचढाई करनेकेलिचले गये,पीछे.... बस भूतिकी अहाहा! हा! क्या रूपहै? स्त्री विसुन्दरी परन्तु है मेरे छोटे भाई की स्त्री!) विसुन्दरीको बाल सुखा कोई भी हो, यह तो प्राप्त करने रही थी। मुझे मिलनी ही ਲਿਨ੍ਹਾਂ कमठउसे चाहिए। बैचेन हो देख रहाथा उठा...... 18888890 UUUUUUUU CO कमठ ने अपने मित्रकाल हंस से मिल कर एक गंभीर षड्यंत्र रचा...खुदबागमें लेट गया और उसका मित्र... कालहंस अरीबहिन!कछ सुना तुमने हैं। उन्होने ऐसा कहा। विसुन्दरी तुम्हारे जेठ जी बहुत बीमारं| अबक्या करूं? वे तोयहां ) केपास बगीचे में लेटे हैं।'भाई है नहीं जेठजीका व उनका) पहुंचा और भाई पुकार रहे हैं। भाई नहीं बहुत प्रेम है मेरे न जानेसे दुखीस्वर | तो उनकी पत्नी ही मेरा हाल वे बहुत नाराज होंगे में बोलाचाल पूछने आजाती... 461DUN MAGAR अच्चभैया चलती हूं। - तिसन्दरीकाल हंस के साथ बगीचे में पहुंच गई। कालहंस उसे वहीं छोड़कर गायब हो गया ।उधर कमठ बहाना करके लेटा थाही..... Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब राजा अरविन्द युद्ध से लौटे तब xxxxxx मंत्री जी मैंने सुना है कि तुम्हारे बड़े भाई ने तुम्हारी पत्नी के साथ... अब क्या दंड दिया जाये उस पापी को ? यह कैसे हो सकता है मंत्री जी। इतना बड़ा अपराध और दंड न दिया जाये । इस अपराध के लिए मृत्युदंड होना चाहिए, परन्तु आपके कहने के कारण मैं आज्ञा करता हूं कि उसका काला मुंह करके गधे पर बैठा कर देश से बाहर निकाल दिया जावे। 7631 कमठ को देश निकाला दे दिया गया. लोगों ने गधे पर चढा कर काला मुंह करके नगर के बाहर तक विदा किया... | कमठ की बन आई। उस दुराचारी ने उसका सतीत्व ही लूट लिया । राजन ! वह मेरे बड़े भाई हैं। भूल हो गई, होगी उनसे । कृपया उन्हें क्षमा कर दीजियेगा महाराज...... जो आज्ञा महाराज ! वहां से अपमानित कमठ भूता चल पर्वत पर पहुंच गया जहां जटाधारी, शरीर पर राख लगाये, चिमटा लिए, चारों ओर अग्नि | जलाये एक तापसी बैठा था......... महात्मन! मुझे भी अपना चेला बना लीजियेगा। W वत्स! जैसी तुम्हारी इच्छा Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमठ तापसी के आश्रम में रहने लगा। एक दिन वह दोनों हाथों पर एक शिला उठाये तपस्या कर रहा था कि.... | भैया! मुझे क्षमा कर दो ना। मैंने राजा को बहुत समझाया परन्तु वह माने ही नहीं। मैं तुम्हें देखने को बहुत बेचैन था। बहुत ढूंढा । अब मिले हो। मुझे क्षमा करो... भैया क्षमा करो.... और कमठ ने वह शिला अपने छोटे भाई के मस्तक पर पटक दी। खून की धारा बहने लगी और मरुभूति वही मर गया..... Jabil तुझे क्षमा कर दूं ? दुष्ट कहीं का, तेरे ही कारण तो मुझे घोर अपमान सहना पड़ा। अब तू कहां जायेगा मुझ से बच कर. ... ht मरुभूति मर कर सल्लकी नाम के बन में वज्रघोष नाम का हाथी हुआ और कमठ तापसी मर कर उसी बन में सर्प बना.. www ..... और उधर राजा अरविन्द गढ की छत पर खड़े थे अहा! हा कितना सुन्दर महल है यह ? क्यों न में भी इसी प्रकार का महल बनवाऊं चलूं कागज लेकर चित्र बना लूं Ju 4 LAMMA मिलले Fo 7AnAna anmi anne Con Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा अरविन्द कागज लेकर आये परन्तु ... बादल महल गायब था ....... हैं! यह क्या ? वह महल कहां चला गया ? वह तो अब है ही नहीं । १००० कितना क्षणभंगुर है यह दृश्य ? क्या ऐसी ही दशा हमारी होगी ? मैं खुद.. मेरा यौवन, मेरे थे भोग विलास ? क्या रखा है इनमें ? "यौवन, गृह, गो, धन, नारी, हय गय जन आज्ञाकारी । इन्द्रिय भोग छिन काई, सुरधनु चपला चपलाई ॥ " మురుగడ్డి KARY और वह राजा अरविन्द मुनि बन गये। एक दिन बिहार करते हुए पहुंच गये उसी सल्लकी बन में। ध्यान में बैठे थे। बज्रघोष हाथी उपद्रव मचा रहा था। मुनि को बैठा देख कर ... हैं ये कौन ? ये तो कोई परिचित से मालूम होते हैं। ओह याद आया। पहले भव में में इनका मंत्री मरुभूति ही तो था कितने शांत हैं ये और मैं कितना क्रोधी... चलूं इनके चरणों "में बैठूं । ... हे भव्य । तेरा कल्याण हो। तू धर्म को स्वीकार कर । संयम से रह। किसी जीव को मत मार । किसी को तकलीफ न दे । हथिनी से दूर रह । सबका भला सोच । तेरा कल्याण होगा।. हाथी ने धर्म अंगीकार किया। सूखे घास फूस, पत्ते खाने लगा। किसी जीव को उससे कष्ट न हो, ऐसी क्रिया से रहने लगा। हथिनी से दूर रहने लगा 5 @imti Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन बड़ी प्यास लगी और चल दिया वेगवती नदी की ओर...... हैं यह क्या ? आया तो था यहां पानी पीने, परन्तु फंस गया हूं कीचड़ में। इससे निकलना नामुमकिन है । मृत्यु निश्चित है। ऐसे में मुझे चाहिए कि मैं शांत परिणामों से मरू, खाना पीना छोड़ दूं। और.... हाथी बैठ गया शांतचित्त होकर मानों समाधिमरण में बैठा हो - इतने में कमठ के जीव सर्प ने उसे डंक मारा और वह मर गया ....... हाथी मर कर बारहवें स्वर्ग में शशिप्रभ देव हुआ.... हैं! यह क्या ? मैं यहां कहां ? 00 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..ओह ! ध्यान आया- मैं पहले भव में हाथी था-धर्मधारण किया,संयम से रहा,मरते समय सन्यास लिया,उसी का यह सब फल है। मुझे अबभी भगवान जिनेन्द्र देव की पूजा (पाठ आदि में ही लगे रहना चाहिए। / CX107 इस प्रकार पूरा जीवन /-१६ सागर की आयु-एक बहुत लम्बा समयधर्मध्यान में ही बिताया उस शशिप्रभदेवने, वहांपर इंद्रियसुखहीसुख-१६०००वर बाद भूख लगती तो कण्ठसे अमृत झरजाता और सांस भी लेना पड़ता तो १६ पखवाड़े के बाद। वहां की आयुपूरी करके पूर्व विदेह क्षेत्र में विशुतगति भूपाल की विद्युतमालारानी के अग्निवेग नामका पुत्र हुआ। UNT बड़ा होने पर अग्निवेगने मुनि दीक्षा लेली। एक दिन वह A AVRXXX मुनि गुफामेंध्यान मग्न बैंठे थे। वहां पर एक अजगर आया। यह अजगर वही कमठ काजीन था जो सल्लकीवन में सर्प हुआ था। सर्प मर कर लोटे परिणामोंवबदले के भावों के कारण पाँचव नरक में गया था वहाँसे मरकरहीयहां अजगर हुआ था। मुनि कोध्यानमग्न देखकर फिर अजगरको बैर भाव पैदा हुआ और मुनि महाराज को डंक मारकर उनका काम तमाम कर दिया। SUNIA मर कर मुनि महाराज सोलहवें स्वर्ग में देवहुए ... ... ... बा OON JADUDIO प्रकार SAMOUL TRA एक JOOODU Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवें स्वर्ग की आयु पूरी | करके अश्वपुर नगर के राजा व्रजवीरज की पटरानी विजया के वज्रनाभि पुत्र हुए....... वज्रनाभि चक्रवर्ति बने । अटूट सम्पति१४ रत्न, एनिधि १८ करोड़ घोड़े ८४ लाख रथ २६ हजार रानी छ. खण्ड का अधिपति सब कुछ तो था उसके पास। तो भी धार्मिक क्रियाओं में ही लगा रहता था । बीज राख फल भोगते, ज्यों किसान जग मांही। त्यों चक्री नृप सुख करे, धर्म बिसारे नाहीं ॥ एक दिन.. हे कृपासिंधु । मैं इस कर्मबंधन से छूटना चाहता हूँ । कृपयामुझे धर्म का उपदेश देकर कृतार्थ कीजियेगा तो हे महात्मन, मुझे वही मुनि दीक्षा दे दीजिये। ना जिससे मैं आवागमन से छूटने का उपाय कर सकूं 8 PL हे भव्य ! तूने भळा विचारा | धर्म ही शरण है। धर्म ही हित है। संसार है है भोग क्षण भंगुर हैं। संसार में सुख है ही नहीं। सुख तो निराकुलता मोक्ष में है। और मोक्ष प्राप्ति बिना मुनिबने हो ही नहीं सकती ।, वत्स ! तेरा कल्याण हो । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वजनाभि मुनिबने,सबकुछ छोड़ दिया-जंगल में घोर तपश्चर्या कर रहे थेकि एक भील ने उन्हें देखा भीलऔर कोई नहीं था वहीकमठ का जीव था जो अजगर के शरीरको छोड़कर २२ सागर तक छठे नरक में रहा और वहां से निकल कर यहां भील हुआ। मुनि को देखकर.... हैं! यह कौन है? यह तो वही मेरा पुराना कईभवों से चला आया, शत्रु है। अब मेरे से बच कर कहां जायेगा 12072.. आजतो मै इसको... EARN M ... मुनि मरकर मध्यमवेयक में अहमिन्द्र हुए और भील सातवें नरक गया। यही तो है अच्छे बुरे भावों का फल.... ... ... MATATURE Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Moon वह अहमिन्द्र आयु पूर्ण करके अयोध्याके राजा वज्रबाहु की रानी प्रभावती के आनन्द कुमार नाम का पुत्र हुआ।जवान हुआ,विवाह हुआ पिताने राज्याभिषेक किया। एकदिन राज्यसभा में आनन्दकुमार राजा बैठे थे कि... ... ... महाराज कीजयहो! मंत्री जी आपने अच्छी याद दिलाई। महाराज! आज चलो जिन मंदिर में कल अष्टालिका पूजन करने चलें पर्वचल रहाहै। आपभी जिनेन्द्र भगवान कापूजन रचाकर पुण्य लाभकमाइयेगा एक दिन...... हैं यह क्या? सफेद बालामृत्युका मियादी वारंट! बुढ़ापा लो आही गया, मृत्यु भी बहुत जल्दी आ ही जायेगी। क्या हो अच्छा हो झटपट गृहस्थी के झंझट से छट कर मुनिदीक्षाले कर कल्याण मार्ग में लग जाऊ! DAAOCAL PPPproferonm SG । माण प्प्याम्पम्म्ण्णाजामण्ण पाणपwwwcmo बस राजाआनन्द दिगम्बर मुजि बन गये, उत्तम क्षमादि १०धर्मों का पालन करने लगे,अजित्यादि. १२ भावनाओं का चिन्तन किया,२२ परिषद जीते, २६भावनायें भाई, जिनके भाने से तीर्थंकर प्रकृति काबंध किया... Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन आनन्दमुनिघोर तपस्या कर रहे थे किएक शेर उनपर झपटा।यह शेर उसीकमठ काजीवथा जो बैरभाव के कारण सातवें नर्क से निकलकर इसी बन में शेर हुआ मुनि को देख कर.... अरेयही तो मेरा कई जन्मो का शत्र है। अब कहां जायेगा मेरे से बच कर। मारुझपट्टा और कर दूंइसका काम तमाम | 1 wnhansi P LILION इतना उपसर्ग होने पर भी शान्ति से प्राण छोड़ते है मुनि आनन्द और शुभ परिणामों के कारण पहुंच जाते हैं आनल नाम के स्वर्ग में वहां पर जब उनकी आयु ६महीने शेष रह गई तब वहां सौधर्म इन्द्र ने कुबेर को बुलाकर मंत्रणा की व आगे की व्यवस्था के लिए आदेश दिया. देखो कुबेर आनत स्वर्ग के इन्द्र की आयु केवळ ६महीने की बाकी रह गई है। वह वाराणसी में २३ तीर्थंकर होने वाले है। तुम वाचले जाओ नगरीकोखूबसजाओ और १५.महीने तक प्रतिदिन रत्नों की वर्षा करो जोआज्ञा महाराज CAMERIC Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुबेर द्वारा वाराणसी नगरी में नित्य ३५ करोड़ रत्नों की वर्षा होती रही। ६ महीने बीतने पर एक दिन रात्रि | के पिछले पहर में राजा अश्वसेन की रानी वामा देवी ने १६ स्वप्न देखे... प्रातः होने पर रानी ने राजा से स्वप्नों की बात बताई और पूछा 00 प्राणनाथ! आज मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैंने रात्रि में १६ स्वप्न देखे हैं । कृपया बतलाईये इनका क्या फल होगा ? और उधर स्वर्ग लोक में. चलें भगवान का गर्भकल्याणक उत्सव बड़े. उत्साह के साथ मनाये । 3333333 हैं! आज हमारे आसन क्यों डोल रहे हैं। ओ हो ! 12 120 FOSS श प्रिये, तुम धन्य हो । इन सोलह स्वप्नों का फल यह है कि तुम्हारे. गर्भ में 23 वें तीर्थंकर पधारे हैं । आज वाराणसी में रानी वामा देवी के गर्भ में २३ तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ आये हैं। चलो, सभी वाराणसी को चलें । Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्गों के देवतागण अपने अपने वाहनोंपर वाराणसी की ओर जयजयकार करले हुए चलदिये। वहां पहुंचकर... आपकी जयहो। आपधन्य है आप केयहां २३वें तीर्थकर माताजी के गर्भ में आगये हैं | आप बड़े पुण्यशाली हैं BREASEAN जा हम माताजी की सेवा के लिए देवियों को छोड़कर जारहे हैं। इससे महीने बाद पोषबदी ११ को पहले स्व र्ग में....... IN MuttamIITES हैं। आज मेरा यह इन्द्रासन क्यों कांपरहा है। ओहो! आजतो वाराणसी में (अगवान पार्व नाथ का जन्म पहुआ है। अपने आसन से उठकर 9 पग आगेचलकर सौधर्मइन्द्र ने भगवानको परोक्ष नमस्कार किया और फिर... अरेसुनो! आज वाराणसी में 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म (हुआ है।चलें वहां भगवान का जन्मकल्याणक मनायें। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्ग से चल दिये सभी देवता लोग भगवान का जन्म कल्याणक मनाने । आगे आगे सौधर्म इन्द्र अपनी इन्द्राणी सहित ऐरावत हार्थी पर,पीछे अन्य देवता गण अपने अपने वाहनों पर सभी नाचते, गाले,जय जयकार करते आकाश मार्ग से वाराणसी पहुंचे। नगर की परिक्रमा की और....... blue H Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DO8 राजा अश्व सेन के महल में सौधर्म इन्द्र की इन्द्राणी प्रसूतिगृह मेंगई. अहा! हा! हा! आज मैं निहाल होगई। चलूं,बालक को ले चलं अपने पति को सौंपदं, और किरचलें पांइक शिलापर बालक क' जन्माभिषेक करने के लिए। परन्तु यदि बाजक को उठाया लो माता को कष्ट होगा। अतः इतनी देर के लिए माता को निद्रा में सुला दूं और एक मायामई बालक को उनके निकट लिटाकर भगवान बालक को उठा लूं। wheel MO । O MATEHSTUDIO 1972 DEAS JOITTES HE Janata T troy KDOLVIN VILLA Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्राणी बालक को सौधर्म इन्द्रको सौंपते हुए लो चलो ताकि नेत्रों के द्वारा इन्हें अपने हृदय में भगवान बालक को लेकर सौधर्म इन्द्र ऐरावत हाथी पर बैठा है। ईशान इन्द्र ने छत्र लगाया - सनत्कुमार | व महेन्द्र चमर ढोर रहे हैं।, सब देव देवियां गीत गाते, नृत्य करते पुष्प वृष्टि करते, जुलूस के रूप में पाडुक शिला की ओर जा रहे हैं प्राणनाथ ! लो इन्हें लो | कितना सुन्दर बालक है ? धन्य हुए हैं हम आज । 16 बालक क्या है कमाल का रूप है • इनका । मैं तो देख कर तृप्त ही नहीं हो पा रहा हूं। शायद १००० नेत्री से देख कर तृप्त हो सकूं १००० नेत्र बना लेता हूं उतार सकूं । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ONA पांडक शिला पर बालक को विराजमान किया। क्षीरोदधिलक रत्नों की पैडियां बनाकर देव पंक्तियां बनाकर खड़े हो गये। वहां से हाथों हाथ जल ला रहे हैं और सौधर्म इन्द्र आदि १००८ कलशोंसे भगवान बालक का अभिषेक कर रहे हैं। ANCE Huder u 17 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फिर सौधर्म की इन्द्राणी ने बालकको कपड़ों से पोंछा वस्त्राभूषण पहनायें। तिलक किया. जुलूसचल दिया वाराणसी को...... " J NERAL E AT DOOD इन्द्राणी प्रसूतिगृह में गई बालक को माता वामा देवी के पास लिटाया... Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब माता जाग गई ... SARATDISAALA 1056 रा oo अहा ! मैं आज कितनी धन्य हूं । कितना सुन्दर बालक है ! क्या अदभुत रूप है ? क्या मनोहर छवि है ? सौधर्म इन्द्र भगवान के माता पिता के पास पहुंच गये........ आप धन्य हैं। आपके तीर्थकर पुत्र ने जन्म लिया है। कृपया हमारा प्रणाम, स्वीकार करें। और ये तुच्छ 'भेट भी 7000 சிம்சதிதை th" per OUT! 19 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा अश्वसेन ने भी बालक तीर्थंकर का जन्मोत्सव मनाया ανακ अब तो बालक प्रभु बाल क्रीड़ा करने लगे। देवता लोग भी बालक का रूप बनाकर उनके साथ खेलते खाते, खुशियां मनाते, नाचते गाते थे। 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब पार्श्वनाथ १६ वर्ष के हुए तब एक दिन... बेटा मैं कब से स्वप्न रही हूँ कि घर में एक छोटी सी प्यारी सी बहू आयेगी । बेटा अब तुम जवान हो गये हो, अब तो यही उचित है कि तुम विवाह कर लो और गृहस्थी के सुख भोगो । हाथ कंगन को आरसी क्या ? तुम इसमें फाड़ कर देख लो | माताजी, मेरी आयु केवल १०० वर्ष की है । ३० वर्ष की आयु में मुझे घर छोड़ ही देना है । फिर केवल १४ वर्ष के लिये मैं गृहस्थी के जंजाल में क्यों फंसू । मैं तो इस बंधन में बिल्कुल भी बंधना नहीं चाहता। कृपया मुझे क्षमा कीजियेगा । और उधर ..... । कमठ का जीव जिसने शेर की पर्याय में मुनि आनन्द कुमार को अपने पंजों से मार डाला था, मुनि हत्या के पाप से पांचवें नर्क में गया वहांपर १६ सागर की आयु पूरी की। वहां से मर कर ३ सागर तक और और जगह जन्म धारण कर कर के नाना दुःख सहे। फिर किसी पुण्योदय से महीपालपुर में महीपाल राजा हुआ। महीपाल राजा की पुत्री वामादेवी ही भगवान पार्श्व नाथ की माता थी। जब महीपाल राजा की पटरानी का देहान्त हो गया तो वह राजा महीपाल दुखी हो कर तापसी बन गया । और पंचाग्नि तप करने लगा। एक दिन वह पंचाग्नि तप कर रहा था कि राजकुमार उधर से निकलेअरे तुझे बड़ा पता है कि इसमें क्या है ? तू कल का छोकरा क्या तू सर्वज्ञ है ? दूसरे मैं तेरा नाना और तपस्वी! पर तू इतना उदन्ड कि मुझे नमस्कार तक भी नहीं किया ! अरे! यह तुम क्या कर रहे हो ? जिस लक्कड़ को तुम जला रहे हो उसमें तो नाग नागनी का जोड़ा है। 21 अच्छा, इसे अभी फाड़ता हूँ । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तापसी ने उसी क्षण कुल्हाड़ी से लम्कड़ को फाड़ डाला... उसमें से अधजले नाग नागिन निकले णमो अरिहंतागंणमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं,णमोउवज्झायाणं, णमोलोएसव्वसाहणं १अरे? 1000 आयु पूर्ण होने पर यही तापसी मरकर संवरनामका ज्योतिषि देव हुआ CUTTUR णमोकार मंत्रकोसुन करनाग नागिनी के परिणामो में सुधार हुआऔर मर कर वे देव लोक में धरणेन्द्रवपद्मावती बने। 22 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ omcyYOURQonmaare 22 जब राजकुमार पार्श्वनाथ ३० वर्ष के हुए, एक दिन अयोध्या के राजा जयसेन का दत पाश्र्वनाथ को भेन्ट देने के लिए आया.. आपकी जयहो।अयोध्या केराजा जयसेन ने आपके चरणो में यह भेटभिजवाई है, कृपया स्वीकार कीजियेगा। EUROHS TNI यह अयोध्या कौनसी नगरी है बलाइये तो सही! MAN महाराज,यह अयोध्या वह नगरी है जहां पर देवाधिदेष प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेवने जन्म लिया था हैं। भगवान ऋषभदेव की जन्म भूमि। भगवान ऋषभदेव ने तो कर्मों का नाश करके मोक्षको प्राप्त कर लिया था....... और मैं अभी भी संसार में फंसा हुआ हूं ! मुझे भी धर बार छोड़ कर अपना कल्याण कर लेना चाहिए। देर नहीं करनी चाहिए। अच्छा चढं अब मुनि बनने... SOCTecO0E0५ OGUE LOOOG00000009 oophapor SAWA PORamcomopal राजकुमार पार्श्वनाथ... वैराग्य की भावना का चिन्तन कर कल्याण मार्ग पर अग्रसर हो गये... Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तभी पांचवें स्वर्ग से लौकान्तिक देव आ पहुंचे। वे भगवान के लप कल्याणक में ही आते हैं। बाल ब्रह्मचारी होते हैं और अगले भव मैं मनुष्य बनकर मोक्ष प्राप्त करतेहैं TITUTICT वाहखूब! (आपने भला विचारा 7 महाराज आपको यहीयोग्य है। आप धन्य हैं। देवोंने पालकी सजाई उसमें पार्श्वनाथ को देवताओं ठहरो, पालकी हम बैठाया और पालकी उठाने लगे कि...... उठायेंगे आपको क्या हक है हम पालकी के उठाने के हकदार क्यों नहीं पालकी उठाने का ? हैं भाई१ भगवान के गर्भकल्याणक में हम आये,जन्मोत्सव हमने मनाया, फिर पालकी, हम क्यों न उठायें ब B क स HAAR ST WwwwwvOTOS 24 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAJA | नहीं। पालकी हमठठायेंगे नहीं दिरहट जाओ। पालकी हम ये भी मनुष्य हैं और हम भी उठायेंगे हम तुमसे बहुत शक्तिशाली मनुष्य फिरयेहक हमारा है अतः हमारा हक है। हीतोहै। तुमशक्तिशाली भैया,यहां हम हो लो बनकर दिखा विवश हैं। हम दो मुनि, जो यह मुनिल धारण बनने जा रहे हैं। नहीं कर सकले। संयमधारण करने की शक्ति तोतुममें ही है।हम तुमसे भीख मोगले हैं। हमें कुछ क्षण केलिए मनुष्य भवदेदो चाहे बदळे मैं हमारा सारा वैभव ले लो। जस्यक 0000000000 JOID SAEXSAPNA निर्णय के अनुसार पालकी पहले भूमिगोचरी राजाओंने उठाई, कुछ दूरचलकर विद्याचरों ने,और कुछ दूर चलने के बाद नम्बर आया देवों का। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पालकी को लेकर देव पहुंच गये वन में। वहां पर वट वृक्ष के नीचे बैठ गये राजकुमार पार्श्वनाथ । वस्त्राभूषण उतार कर फेंक दिये, केशों को हाथ से उचाइ डाळा और बन गये दिगम्बर मुनि.... DIT एकदिन मुनि पार्श्वनाथ आहार के लिए उठे-पहुंच गये राजा ब्रह्मदत्त के यहां निर्विघ्न आहार हुआ,पंचाश्चर्य हुए उसी समय देवताओं ने पुष्प वृष्टि की T HIHINILI VILLTUROTREZZATURE Vin 26 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुछ समय बाद एक दिन मुनि पार्श्वनाथ ध्यानस्थ बैठे थे अहिक्षेत्र में, ऊपर से जा रहा था कमठ का जीव संवर नाम का देव अपने विमान में। विमान मुनि के ऊपर आया और अटक गया। रुक गया। 5001 हैं । मेरा विमान क्यों रुक गया ? अरे नीचे वही भुनि बैठा है जो पहले भव में मेरा शत्रु था। इसने मेरा बड़ा अपमान किया था। अब लूंगा इससे बदला दिल खोल कर देखूं कहां जाता है मुझ से बच कर । आज तो सारी कसर निकाल ही लूंगा । Yuva miy 27 吃 संवर देव ने मुनि पार्श्वनाथ पर उपसर्ग 'शुरू किया... भीषण वर्षा... तूफान...... अग्निवर्षा, पत्थर गिरे परन्तु मुनि ध्यानमग्न बैठे रहे... Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाग नागिनी के जीव जो धरणेन्द्र पद्मावती बन गये थे, अचानक उनका आसन हिलने लगा....... हैं! यह क्या ? आसन क्यों डोल रहा है? आज हमारे उन परोपकारी पर उप सर्ग हो रहा है, जिन्होंने हमारे प्राण बचाये। थे और हमें णमोकार मंत्र सुनाया था। जिसके प्रताप से हम यहां उत्पन्न हुए हैं । चलें हमें उनका उपसर्ग फौरन दूर करना चाहिए 10000 और दोनों आगये अहिक्षेत्र में ! धरणेन्द्र ने फन फैला कर मुनिपार्श्वनाथ को अपने ऊपर बैठा लिया और पद्मावती ने उनके ऊपर अपने फन से छत्र लगा लिया बीच में मुनि पार्श्वनाथ ध्यानस्थ बैठे है । 28 100 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + द मुनि पार्श्वनाथ ध्यान में दृढ़ रहे चार घातिया कर्मों का नाश हो गया और बन गये भगवान तीर्थंकर केवल ज्ञानी- अरहंत । A इन्द्र अपने देवता लोगों के साथ चल दिये भगवान पार्श्वनाथ का केवलज्ञान कल्याणक मनाने के लिए और इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने समवशरण बना डाला - समवशरण यानि सभा मण्डप-बीच में भगवान, चारों ओर १२ कोठों में अलग अलग देव, मनुष्य, तिर्यच्च, स्त्री आदि यहां जीवों में बैर विरोध नही, भगवान के दर्शन चारों ओर से, रात दिन का भेद नहीं । भगवान पार्श्वनाथ समवधारण में उनकी दिव्य ध्वनि खिर रही है। सब बैठे अपनी अपनी भाषा में समझ रहे हैं। वहीं परबैठा है | देवों के कोठे में वही सवर देव । + + R है 144 29 और संवरदेव भाग गया Callig अहाहा! कितना सुन्दर उपदेश है। मैं कितने जन्मों से इनसे बैर कर कर के पापबंध करता रहा 'नाना प्रकार के दुख सहला रहा। और इधर थेबिल्कुल शांत बने रहे। परिणाम स्वरूप ये आज भगवान बने हुए विराजमान हैं । क्या मैं भी ऐसा बन सकता हूं? क्यों नहीं | बैर भाव छोड़ दूं । सही विश्वास बना लूं। मैं क्या हूं? मेरा क्या स्वरूप है ? इसकी सच्ची श्रद्धा कर लूं। इसका जैसा ज्ञान कर लूं और इसी को प्राप्त करने में लग जाऊं इस भव मे न सही अगले भवों में मुनि बन कर मैं अपना कल्याण अवश्य कर लूंगा भगवान पार्श्वनाथ का विहार होने लगा। जहां जाते नया समवशरण बन जाता। मार्ग में सब प्रबन्ध देवों का । आगे आगे देवता लोग भूमि साफ करते हुए, गंधोदक छिड़कते हुए पुष्पवृष्टि करते हुए चल रहे हैं। सबके आगे धर्म चक्र चल रहा है. आकाश में गमन हो रहा है, देवता लोग गा रहे हैं नाच रहे हैं। बजा रहे हैं दिव्य बाजे Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस प्रकार विहार करते हुए अन्त में पहुंच गये सम्मेद शिखर पर । बैठ गये ध्यान मग्न । शेष | बचे चार अघातिया कर्म (आयु, नाम, गोत्र, वेदनीय) भी भाग गये । चार घातिया कर्म (ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी मोहनीय, अन्तराय) पहले ही नष्ट हो गये थे। तभी तो उन्हें केवल ज्ञान हुआ था। आगे क्या हुआ । शरीर. तो कपूर की तरह उड़ गया हाँ बचे रह गये केश और नाखून | अग्निकुमार देवों ने अपने मुकुट से अग्नि जलाई और भगवान के नाखून और केशों को जला डाला | उससे बनी भस्म को सब देवों ने अपने मस्तक पर लगाया । devipes और भगवान आत्माउसे मिल गई मुक्ति, सब कंटों से, सब कर्मों सेद्रव्यकर्म, भावकर्म नो कर्म से । अब वह हो गये पूर्ण निर्विकार, पूर्ण शुद्ध, पूर्ण ज्ञानी व पूर्ण सुखी । जा पहुंचे मोक्ष मेंजहां से कभी नहीं लौटेंगे संसार में, कभी नहीं लेंगे अवतार, कभी नहीं होंगे अशुद्ध। और इधर इन्द्रादिक आ पहुंचे भगवान का निर्वाण कल्याणक मनाने.... आओ हम भी भगवान बनें। 30 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमोकार मंत्र अनादि मंत्र णमो अरहंताणं : अरहंतों को नमस्कार । जिनके भूख, प्यास, बुढ़ापा, रोग, जन्म, मरण, भय, मद, मोह, राग, द्वेष, और शोक आदि दोष नाश हो गए हों, उन्हें अरहत कहते हैं। णमो सिद्धाणं : सिद्धों को नमस्कार। जो संसार के बन्धन से छूट कर सदा के लिए परमात्मपद पा गए हों उन्हें सिद्ध कहते हैं। णमो आइरियाणं : आचार्यों को नमस्कार। जो संसार की वासनाओं को छोड़ कर स्वयं साधु पद में रहते हुए अन्य साधुओं को मार्गदर्शन देते हैं उन्हें आचार्य कहते हैं। णमो उवज्झायाणं : उपाध्यायों को नमस्कार। साधुओं के पठन-पाठन कराने वाले साधु को उपाध्याय कहते हैं। णमो लोए सव्वसाहूण : लोक के सभी साधुओं को नमस्कार। संसार की वासनाओं से उदासीन, सब जीवों मे समान भाव रखने वाले और सदा ज्ञान, ध्यान, तप में लीन महात्मा को साधु कहते हैं। यह मूल मंत्र प्राकृत में है. इसके प्रत्येक पद में वर्णित गणअनादि हैं और इसलिए यह मंत्र भी अनादि है। इसे किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया. ना ही यह किसी व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित है-यह तो सार्वजनीन है क्योंकि यह मानव मंत्र है। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पापा जी। समयसार क्या होता पापाजी! आप क्या पढ़ रहे मन्जू और मुकेश बच्चों को क्या पदना चाहिए बेटा। समयसार द्रव्यानुयोग का ग्रन्थ है तुम नहीं समझोगे। हैं? बेटा। मैं समयसार पद रहा हूँ। बेटा! तो हमारी समझ में क्या आएगा? पहले प्रथमानुयोग पढ़ो। पापाजी! प्रथमानुयोग क्या बेटा । जिसमें महापुरुषों के जीवन चरित्र का वर्णन है, वही प्रथमानुयोग है। KinsRBh नमस्ते चाचाजी!हाँ देखो! कितना सरल तब तो पापाजी देवो यह जैन उपाय प्रथमानुयोग आप भी इसे कॉमिक्स हमारे समझाने का। मँगवाइये ना पापा लाये है। हाँ बेटा। आज ही मनिमार्डर किये देता Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनाचार्यों द्वारा लिखित सत्य कथाओं पर आधारित जैन चित्र कथा आठ वर्ष से ८० वर्ष तक के बालकों के लिए ज्ञान वर्धक, धर्म, संस्कृति एवं इतिहास की जानकारी देने वाली स्वस्थ, सुन्दर, सुरुचिवर्धक, मनोरंजन से परिपूर्ण आगम कथाओं पर आधारित जैन साहित्य प्रकाशन में एक नये युग का प्रारम्भ करने बाली एक मात्र पत्रिका जैन चित्र कथा ज्ञान का विकाश करने वाली ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद और चरित्र निर्माणकारी सरल एवं लोकप्रिय सचित्र कथा जो बालक वृद्ध आदि सभी के लिए उपयोगी अनमोल रत्नों का खजाना, जैन चित्र कथा को आप स्वयं पढ़े तथा दूसरों को भी पढ़ावे। विशेष जानकारी के लिए सम्पर्क करें। आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला संचालक एवं सम्पादक-धर्मचंद शास्त्री श्री दिगम्बर जैन मंदिर, गुलाब वाटिका लोनी रोड, जि० ___ गाजियाबाद फोन 05762-66074 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अराधना सौ० प्रेमलता पहाड़िया धमपत्नि श्री शिखर चन्द पहाड़िया जयहिन्द इस्टे अनं० २-ए, दूसरी मंजिल, भूलेश्वर, बम्मई - 2 PAHARIA 3 PAHARIA SILK MILLS PVT. LTD. SHIKHARCHAND AMITKUMAR PAHARIA INDUSTRIES PAHARIA TEXTILES COROPORATION PARAS SLIK INDUSTRIES SAPNA SILK MILLS SHIKHARCHAND PREMLATA PAHARIA PAHARIA TEXTILES MILS PVT. LTD. PAHARIA TEXTILES INDUSTRIES PAHARIA UDYOG PAHARIA SYNTHETICS VARUN ENTERPRISES ANAND FABRICS PANCHULAL NIRMALDEVI PAHARIA I US Kaushal Silk Mills Pvt. Ltd. FACTORY: 875, KAROLI ROAD, OP. PAHARIA COMPOUND BHIWANDI, DIST. THANE TEL : 34243, 22819, 22816 FAX : (02522) 31987 REGD. OFF. JAI HIND ESTATE NO. 2-A, 2ND FLOOR, DR. A.M. ROAD, BHULESHWAR, BOMBAY- 400 002 TEL : 2089251, 2053085, 2050996 FAX : 2080231 Printed at: SAINANI OFFSET 2283885