SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ..ओह ! ध्यान आया- मैं पहले भव में हाथी था-धर्मधारण किया,संयम से रहा,मरते समय सन्यास लिया,उसी का यह सब फल है। मुझे अबभी भगवान जिनेन्द्र देव की पूजा (पाठ आदि में ही लगे रहना चाहिए। / CX107 इस प्रकार पूरा जीवन /-१६ सागर की आयु-एक बहुत लम्बा समयधर्मध्यान में ही बिताया उस शशिप्रभदेवने, वहांपर इंद्रियसुखहीसुख-१६०००वर बाद भूख लगती तो कण्ठसे अमृत झरजाता और सांस भी लेना पड़ता तो १६ पखवाड़े के बाद। वहां की आयुपूरी करके पूर्व विदेह क्षेत्र में विशुतगति भूपाल की विद्युतमालारानी के अग्निवेग नामका पुत्र हुआ। UNT बड़ा होने पर अग्निवेगने मुनि दीक्षा लेली। एक दिन वह A AVRXXX मुनि गुफामेंध्यान मग्न बैंठे थे। वहां पर एक अजगर आया। यह अजगर वही कमठ काजीन था जो सल्लकीवन में सर्प हुआ था। सर्प मर कर लोटे परिणामोंवबदले के भावों के कारण पाँचव नरक में गया था वहाँसे मरकरहीयहां अजगर हुआ था। मुनि कोध्यानमग्न देखकर फिर अजगरको बैर भाव पैदा हुआ और मुनि महाराज को डंक मारकर उनका काम तमाम कर दिया। SUNIA मर कर मुनि महाराज सोलहवें स्वर्ग में देवहुए ... ... ... बा OON JADUDIO प्रकार SAMOUL TRA एक JOOODU
SR No.033238
Book TitleTali Ek Hath Se Bajti Rahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy