Book Title: Takraav Taliye
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 10
________________ टकराव टालिए इसलिए हमारी भूलकी वजहसे ही दीवार टकराती है । उसमें दीवारका कसूर नहीं है । तब लोग मुझसे पूछते है कि, "ये लोग सभी क्या दीवार है ?" तब मैं कहता हूँ कि, "हाँ, लोग वे भी दीवार ही है ।" यह मैं देखकर कहता हूँ । हय कोई गप नहीं है । किसीके साथ मतभेद होना और दीवारसे टकराना, ये दोनो बाते समान है । दोनोंमें भेद नहीं है । यह दीवारसे जो टकराता है वह नहीं दिखनेकी वजहसे टकराता है और वह मतभेद होता है वह भी नहीं दिखनेकी वजहसे मतभेद होता है । आगाका उसे दिखता नहीं है । ये क्रोध-मान-माया-लोभ आदि होते है वे नहीं दिखने की वजह से ही सभी होते है ! यह बात इस तर है यह तो समझना होगा न ! लगा उसका दोष न, दीवारका इसमें क्या दोष ? तब इस संसारमें सभी दीवारे ही है । दीवारके टकराने पर उसके साथ खरी-खोटी करने हम नहीं जाते है न? "यह मेरा सही है" ऐसे लड़नेकी झंझटमें हम नहीं पड़ते न ? ऐसा यह दीवार के समान ही है । इसके साथ खरा करवाने की जरूरत ही नहीं है । जो टकराते है वे दीवारे ही है ऐसा हम समझ ले । फिर “किवाड़ कहाँ है इसकी खोज करेंगे तो अंधेरी में किवाड़ मिल जायेगा । ऐसे हाथसे टटोलते टटोलते जाने पर दरवाजा मिले कि नहीं मिले ? और वहाँसे फिर खिसक जायें, टकराये नहीं । ऐसा कानून पालना चाहिए का किसीके टकरावमें आना नहीं है ।" (१२) जीवन ऐसे जीयें ! बाकी, यह तो जीवन जीना ही नहीं आता । ब्याहना नहीं आया तब बड़ी मुश्किलसे ब्याहे ! बाध होना नहीं आता और ऐसे ही बाप हो गया । बच्चे खुश हो जायें ऐसा जीवन होना चाहिए । सबेरे सभी साथ मिलकर तय करना चाहिए कि, "भाई आज किसीकी आमने सामने टक्कर नहीं होनी चाहिए ऐसा हम सोच ले ।" टकरावसे फायदा होता हो तो मुझे बताइए । क्या फायदा होता है टकराव टालिए प्रश्नकर्ता : दु:ख होता है। दादाश्री : दु:ख होता है इतना ही नहीं, इस टकराव से अभी तो दु:ख दुआ मगर सारा दिन बिगड़े और अगले जनममें फिर मनुष्यत्व जाता रहें । मनुष्यत्व तो कब रहेगा कि सज्जनता होगी तो मनुष्यत्व रहेगा । लेकिन पाशवता हो, बार-बार घूसे लगाये बार-बार सींग मारते रहें, फिर वहाँ पर मनुष्यत्व आये ?! गायें-भैंसें सींग मारे या मनुष्य मारे ? प्रश्रकर्ता : मनुष्य ज्यादा मारे । दादाश्री: मनुष्य मारे तो फिर उसे जानवर की गति प्राप्त होगी । अर्थात वहाँ पर दो के बदले चार पैर और उपरसे दम मिलेगी ! वहाँ पर कुछ ऐसा वैसा है ! वहाँ क्या दुःख नहीं है ? बहुत है । थोड़ा समझना होगा न, ऐसा कैसे चलेगा सब ! टकराव, वह तो अज्ञानता ही हमारी ! प्रश्रकर्ता : जीवनमें स्वभाव नहीं मिलते, इससे टकराव होता है न ? दादाश्री : टकराव होता है, उसका नाम ही संसार है ! प्रश्नकर्ता : टकराव होनेका कारन क्या है ? दादाश्री : अज्ञानता । जहाँ तक किसीके भी साथ मतभेद होता है, वह आपकी निर्बलता की निशानी है। लोग गलत नहीं है । मतभेदमें कसूर आपका है । लोगोका कसूर होता ही नहीं है । वह जान-बुझकर करता हो तो हमें वहाँ पर क्षमा माँग लेनी चाहिए कि, "भैया यह मेरी समझमें नहीं आता है।" बाकी, लोग भुल करते ही नहीं है, लोग मतभेद होने दे ऐसे हैं ही नहीं । जहाँ टकराव हुआ वहाँ हमारी ही भूल है । प्रश्नकर्ता : टकराव टालना हो और खंभा बीचमें खड़ा हो तब हम बाजू परसे खीसक जायें, पर खंभा खुद आकर हम पर गिरे तब क्या

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