Book Title: Takraav Taliye
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 13
________________ टकराव टालिए प्रभाव है । इसलिए हमने "कोमनसेन्स'का अर्थ लिखा है कि "एवरीव्हेर एप्लिकेबल" । आजकी जनरेशनमें (पीढी) "कोमनसेन्स" जैसी चीज़ ही नहीं है . जनरेशन टु जनरेशन (पीढ़ी दर पीढ़ी) "कोमनसेन्स' कम होती गई है। (17) हमारा विज्ञान प्राप्त होनेके प्रश्चयात मनुष्य ऐसे रह सके । अगर तो आम जनता में कोई इकाध मनुष्य उस प्रकार रह सके, ऐसे पुण्यवंत लोग निकलते है ! पर वह तो अमक जगह रह सके, हर जगह नहीं रह सकते । प्रश्रकर्ता : सभी घर्षणोंका कारन यही है न कि एक "लेयर" (परत) से दूसरे "लेयर" का अंतर बहुत ज्यादा है ? दादाश्री : घर्षण वह प्रगति है! जितनी माथापच्ची होगी, घर्षण होगा, उतना उपर उठनेका मार्ग मिलेगा । घर्षण नहीं होने पर जहाँ के तहाँ रहोगे । लोग घर्षण खोजते हैं । टकराव टालिए प्रश्नकर्ता : संघर्षसे आत्म शक्ति कुंठित होती है न ? दादाश्री : हाँ, सही है । संघर्ष हो इसमें हर्ज नहीं है, "हमे संघर्ष करना है" ऐसा भाव निकाल देनेको कहता हूँ । "हमें" संघर्ष करनेका भाव नहीं होना चाहिए, फिर चंदूलाल चाहे संघर्ष करे । हमारे भाव कुंठित हो ऐसा नहीं होना चाहिए! घर्षण कराये, प्रकृति ! प्रश्नकर्ता : घर्षण कौन कराता है ? जड या चेतन ? दादाश्री : पिछले घर्षण ही घर्षण करवाते है । जड़ या चेतनका इसमें सवाल ही नहीं है । आत्माकी इसमें कोई दखल ही नहीं है । यह सारा घर्षण पुद्गल ही कराता है । लेकिन जो पिछले घर्षण हैं वे फिरसे घर्षण करवाते हैं । जिसके पिछले घर्षण पूरे हो गये हैं उसको फिरसे घर्षण नहीं होता । वर्ना घर्षणपे घर्षण और उसके उपर घर्षण होते ही रहेत है । पुद्गल मक्ने क्या कि वह पूरा जड़ नहीं है, वह मिश्र चेतन है । यह विभाविक पुद्गल कहलाता है, विभाविक माने विशेष भावसे परिणाम प्राप्त पुद्गल, वह सब करवाता है । जो शुद्द पुद्गल है, वह पुद्गल ऐसावैसा नहीं करवाता । यह पुद्गल तो मिश्र चेतन हुआ है । आत्माका विशेष भाव और इसका विशेष भाव, दो मिलकर तीकरा रूप हुआ, प्रकृति स्वरूप हुआ । वह सब धर्षण कराता है । प्रश्नकर्ता : घर्षण नहीं होता, वह सच्चा अहिंसक भाव पैदा हुआ कहलाये? दादाश्री : नहीं, ऐसा कुछ नहीं ! लेकिन यह दादाके पाससे जाना कि इस दीवारसे घर्षण करनेसे इतना फायदा, तो भगवानके साथ घर्षण करने में कितना फायदा ? इतना जोखिम समझने पर ही हमारा परिवर्तन होता रहे । घर्षणसे प्रगतिकी राह पर....... प्रश्रकर्ता : घर्षण प्रगतिके लिए है ऐसा करके खोजने पर प्रगति होगी? दादाश्री : लेकिन ऐसे समझ कर नहीं खोजते । भगवान कुछ उपर नहीं उठा रहे है, घर्षण उपर उठाता है । घर्षण हद तक उपर उठा सके, बादमें ज्ञानी मिले तो ही काम होगा । घर्षणतो प्राकृतिक तरीकेसे होता है । नदीमें परस्पर टकरा-टकरा कर गोल होते है ऐसे । प्रश्रकर्ता : घर्षण और संघर्षणमें क्या फर्क है ? दादाश्री : जिसमें जीव नहीं है वे सभी टकराये, वह घर्षण कहलाये और जीववाले टकराये तब संघर्षाण होगा ।

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