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टकराव टालिए
अहिंसा पूर्णरूपसे जानी जाये ऐसी नहीं है और पूर्ण रूपमें समझना बहुत कठीन है । इसके बजाय ऐसा ठान लिया हो कि "घर्षणमें कभी भी नहीं आना ।" तब फिर क्या होगा कि शक्तियाँ अनामत रहा करेगी और दिन-ब-दिन बढ़ती ही रहेगी । फिर घर्षणसे होनेवाला घाटा (19) नहीं होता । कभी घर्षण हो जाये तो घर्षणने बाद प्रतिक्रमण करने पर साफ़ हो जाये । इसलिए यह समझना चाहिए कि जहाँ घर्षण हो जाता है, तो वहाँ प्रतिक्रमण करना चाहिए । वर्ना बड़ी जिम्मेवारी है । इस ज्ञानसे मोक्षमें तो जाओगे, मगर घर्षणके कारन मोक्षमें जाते बाधाएँ बहुत आयेगी और देरसे जा पाओगे !
इस दिवारको लेकर उलटे विचार आये तो हर्ज नहीं है क्योंकि एकपक्षीय घाटा है । जबकि जीवितको लेकर एक उलटा विचार आया कि जोखिम है । द्वीपक्षीय घाटा होगा । लेकिन हम उसका प्रतिक्रमण करे तो सारे दोष धुला जाये । अर्थात जहाँ जहाँ घषर्ण होता है, वहाँ पर प्रतिक्रमण करने पर घर्षण ख़त्म हो जायेगा ।
समाधान सम्यक ज्ञानसे ही ! प्रश्रकर्ता : दादा, यह अहंकारकी बात घरमेंभी कई बार लागू होती है ष संस्थामें लागू होगी है । दादाका काम करते हो उसमें भी कही अहंकारका टकराव होता है, वह भी लागू होती है । वहाँ पर भी समाधान चाहिए न ?
दादाश्री: हाँ, समाधान चाहिए न ! वह हमारे यहाँका ज्ञानवाला समाधान लेगा, लेकिन ज्ञान नहीं हो वहाँ क्या समाधान लेगा ? वहाँ फिर अलग होता जाये, उसके साथ मन अलग होता जाये । हमारे यहाँ अलग नहीं होता !!!
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा टकराना नहीं चाहिए न ? दादाश्री : टकराते है, वह तो स्वभाव है । वहाँ ऐसा माल भरकर
टकराव टालिए लाये हैं, इसलिए ऐसा होता है । यदि ऐसा माल नहीं लाये होते तो ऐसा नहीं होता, अर्थात हमें समझ लेना चाहिए कि भाईकी आदत ही है ऐसी । ऐसा हम समझे । इससे फिर हमें असर नहीं होगा । क्योंकि आदत आदतवालेकी और "हम" अपनेवाले! और फिर उसका निकाला हो जाता है । आप अटक गये तब झंझट । बाकी टकराव तो होगा (20) टकराव नहीं हो ऐसा तो होता ही नहीं न । वह टकरावकी वजहसे हम एक दूसरेसे अलग नहीं हो जायें यही लक्षमें रखना है केवल । टकराव तो अवश्य होगा । वह तो मर्द-औरत में भी होगा । लेकिन वहाँ साथ ही साथ रहते है न बादमें ?! वह तो होगा । उसमें किसीके पर ऐसा कुछ नियंत्रण नहीं रखा हैकि, टकराना नहीं तुम ।
प्रश्नकर्ता : पर दादा, टकराव नहीं हो ऐसा भाव तो निरंतर रहना चाहिए न?
दादाश्री: हाँ रहना चाहिए । वही करना है ना । उसका प्रतिक्रमण करना है और उसके प्रति भाव रखना है! फिरसे ऐसा हो जाये तो फिरसे प्रतिक्रमण करना, क्योंकि एक परत जाती रहे, फिर दूसरी परत जाती रहेगी ऐसी परतवाला है न ?मैं तो जब टकराव होता था उसकी नोट लेता था कि आज अच्छा ज्ञान पाया ! टकराने से फिसलते नहीं, जागृत अऔ जागृत ही रहते न! वह आत्माका विटामीन है । अर्थात इस टकरावमें झंझट नहीं है । टकराव के बाद आमने-सामने अलगाव नहीं हो तो प्रतिक्रमण करके सब समाधान कर लेना चाहिए । हम इन सभीके साथ किस प्रकार मेल रखते होंगे ? आपके साथ भी मेल रहता है, नहीं रहता ? ऐसा है, शब्दोसे टकराव पैदा होता है । मुझे बोलना बहुत पडता है फिर भी टकराव नहीं होता न ?
टकराव तो होगा । टकराव तो ये बरतन खडकते है कि नहीं खड़कते ? पुद्गल स्वभाव है टकराना । लेकिन ऐसा माल भरा होने पर । नहीं भरा हो तो नहीं । हमारा भी टकराव होता था । पर ज्ञान होनेके