Book Title: Takraav Taliye
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 16
________________ टकराव टालिए उनसे मैं पूछता हूँ तब कहते है, "चक्रमक़ जराभी नहीं कच-कच नहीं, खटखट नहीं, कुछ भी नही स्टेन्ड स्टील (सबशांत) !" टकराव टालिए प्रश्नकर्ता : सूक्ष्म माने मानसिक ? बानीसे होता है वह भी सूक्ष्ममें जायेगा? दादाश्री : वग स्थूलमें जो सामनेवालेको मालूम नहीं हो, देखनेमें नहीं आते वे सभी सूक्ष्ममें जाते है । प्रश्नकर्ता : वह सूक्ष्म टकराव टालें किस तरह ? दादाश्री : पहले स्थूल, फिर सूक्ष्म, बादमें सूक्ष्मतर और (24) अंतमें सूक्ष्मतम टकराव टालना है । प्रश्रकर्ता : सूक्ष्मतर टकराव किसे कहते है ? प्रश्रकर्ता : पहले तो हम ऐसा मानते थे कि घरके कामकाजकी वजहसे टकराव होता होगा । पर घरके काममें हेल्प (मदद) करने (23) जायें, फिर भी टकराव । दादाश्री : वे सभी टकराव होंगे ही । जहाँ तक यह विकारी मामला है, सम्बन्ध है, वहाँ तक टकराव होगा ही । टकरावका मूल ही है यह । जिसने विषय जीत लिया उसे कोई नहीं हरा सकता । कोई उसका नाम भी नहीं लेगा । उसका प्रभाव होगा । टकराव स्थूलसे सूक्ष्मत्तम तकका ! प्रश्नकर्ता : हमारा विधान है कि टकराव टालिए । इस वाक्यका आराधन करता जाये तो आखिर मोक्ष तक पहुँचाये । उसमें स्थूल टकराव टालना, फिर आहिस्ता-आहिस्ता इस प्रकार बढ़ते बढ़ते सूक्ष्म टकराव, सूक्ष्मतर टकराव टालता है । यह कैसे ? वह समझायें । दादाश्री : वह जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाये वैसे अपने आप उसे सूझ पैदा होती जाये, किसीको सिखाना नहीं पड़ता । अपने आप आता जाये । वह शब्द ही ऐसा है कि आखिरकार मोक्ष तक ले जाये । दूसरा "भूगते उसकी भूल" यह भी मो तक पहुँचाये । ये एक एक शब्द मो तक पहुँचाये ऐसा है । इसकी गारन्टी हमारी । प्रश्नकर्ता : वह साँपका, खंभेका उदाहरण दिया वह तो स्थूल टकराव का उदाहरण है फिर सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम के उदाहरण दीजिए, सूक्ष्म टकराव कैसा होगा ? दादाश्री : तुझे फाधर (पिताजी) के साथ होता है वह सब सूक्ष्म टकराव। दादाश्री : तू किसीको मारता हो और वह भाई ज्ञानसे देखेकि "मैं शुद्धात्मा हूँ यह व्यवस्थित मार रहा है।" इस प्रकार देखे पर मनसे ज़रासा भी दोष देखे, वह सूक्ष्मतर टकराव । प्रश्नकर्ता : फिरसे कहें, ठीक से समझमें नहीं आया । दादाश्री : यह तू सभी लोगोके दोष देखता है न, वह सूक्ष्मतर टकराव है । प्रश्नकर्ता : अर्थात दूसरोंके दोष देखना यह सूक्ष्मत्तर टकराव ? दादाश्री : ऐसा नहीं खदने तय किया हो कि दूसरोंका दोष है ही नहीं और फिर भी दोष दिखें वे सूक्ष्मतर टकराव है । क्योंकि वे शुद्धात्मा है और दोष उनसे अलग हैं । प्रश्नकर्ता : तो उसे ही मानसिक टकराव कहे न ? दादाश्री : वह मानसिक तो सब सूक्ष्ममें गया । प्रश्रकर्ता : तो इन दोनोंमें फर्क कहाँ पड़ता है ? दादाश्री : यह मनके उपरकी बात है यह तो ।

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