Book Title: Sutra Samvedana Part 03
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 167
________________ १४८ १४८ सूत्रसंवेदना-३ बे लाख चउरिन्द्रिय : चउरिन्द्रिय जीवों की योनि दो लाख है । बिच्छू, मक्खी, भौंरा, कंसारी, डाँस, मच्छर, टिड्डी, तितलियाँ, मकडी वगैरह चउरिन्द्रिय जीव हैं । इन जीवों के उपर द्वेष करने से, उनकी उत्पत्ति रोकने अथवा उनको मारनेवाली दवाइयों आदि का उपयोग करने से उन जीवों की विराधना होती है । ये पद बोलते हुए ऐसी विराधना की क्षमापना करनी चाहिए । चार लाख देवता : देवों की योनि चार लाख है । देवों के मुख्य चार प्रकार हैं : भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष एवं वैमानिक - इन चार प्रकार के देवों संबंधी मन से कोई अशुभ चिंतन किया हो या अन्य किसी तरीके से उनको पीड़ा हुई हो, तो वह देवयोनि संबंधी विराधना है । ये पद बोलते हुए ऐसी विराधना की क्षमापना करनी चाहिए । चार लाख नारकी : नारक जीवों की योनि चार लाख है । रत्नप्रभा आदि सात प्रकार के नरक हैं, जिनमें नारकी के जीव रहते हैं । वहाँ रहे हुए जीवों की मन आदि से कोई विराधना हुई हो, तो उनको इस पद द्वारा याद करके क्षमापना करनी चाहिए । चार लाख तिर्यंच-पंचेन्द्रिय : पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की योनि चार लाख है । पाँच इन्द्रियों वाले तिर्यंच जीवों के तीन प्रकार हैं - (१) जलचर जीव अर्थात् पानी में रहनेवाले मछली, कछुए, मगर वगैरह। (२) स्थलचर जीव अर्थात् जमीन पर चलनेवाले जीव । उनके तीन प्रकार हैं। (अ) चतुष्पद - चार पैरवाले जीव जैसे, कि गाय, भैंस, घोड़ा, कुत्ता बिल्ली वगैरह । (ब) भुज परिसर्प- हाथ से चलनेवाले जीव-चूहा, छिपकली, नेवला वगैरह। (क) उरपरिसर्प - पेट से चलनेवाले जीव-सांप, अजगर वगैरह ।

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