Book Title: Sutra Samvedana Part 03
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 165
________________ सूत्रसंवेदना - ३ के आकार के हो जाए तो जंबूद्वीप में नहीं समा पाएंगे । यह पद बोलते हुए इस तरीके से अनेक प्रकार से की हुई वायुकाय की हिंसा स्मरण में लाकर उन जीवों के साथ क्षमापना करनी चाहिए । १४६ दश लाख प्रत्येक वनस्पति काय : प्रत्येक वनस्पतिकाय जीवों की योनि दस लाख है । वनस्पति काय जीवों के दो प्रकार हैं : सूक्ष्म एवं बादर । उसमें बादर वनस्पतिकाय के दो प्रकार हैं : प्रत्येक एवं साधारण । एक शरीर में एक जीव हो, ऐसी वनस्पति के जीवों को प्रत्येक वनस्पतिकाय कहते हैं एवं एक शरीर में अनंत जीव हों, वैसी वनस्पति के जीवों को साधारण वनस्पतिकाय कहते हैं । किसी एक वृक्ष के फल, फूल, छिलका, काष्ठ, मूल, पत्ते एवं बीज में स्वतंत्र रूप से रहनेवाले प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीव होते हैं एवं संपूर्ण वृक्ष का भी एक जीव होता है । इनके छेदन, भेदन वगैरह से उन जीवों की विराधना होती है । यह पद बोलते हुए उन सब विराधनाओं को याद करके क्षमापना करनी चाहिए । चौदह लाख साधारण वनस्पतिकाय : साधारण वनस्पतिकाय के जीवों की योनि चौदह लाख है । साधारण वनस्पतिकाय के दो प्रकार हैं : सूक्ष्म एवं बादर । उनमें बादर साधारण वनस्पतिकाय लोक के नियत भागों में ही होते हैं । उनके अनेक प्रकार हैं । उनको पहचानने के चिह्न शास्त्र में इस प्रकार बताए गये हैं: जिनकी नसे, संधि गुप्त हों, जिनके भाग करने से दो समान भाग होते हों एवं जिनके किसी 8. गूढसिर संधि पव्वं, समभंगमहिरुगं च छिन्नरुहं । साहारणं सरीर, नव्विवरीयं च पत्तेयं । ।१२ ।। इस सूत्र की विशेष जानकारी सूत्र संवेदना-८ में 'वंदित्तु' सूत्र में से जानना । - जीवविचार गाथा - १२.

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