Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit

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Page 6
________________ FR E : 0 अथ चारच्छलेनासौ तमालब्धं कृतादरः / मन्त्री निशि तदावासमार्ग मृत्यैररोधयत् // 15 // 5 अ०-पछी ते मंत्रीए चोरना मिषथी तेने पकडवाने सावधान रहीने रात्रिए तेना घरना मार्गने चाकरोवडे रोकी राख्यो. // 15 // 6 मत्वेति कर्मकृद्वेषः सह लक्ष्मीधरेण सः। प्रभाववन्ति रत्नानि गृहीत्वा निःसृतः पुरात् // 16 // है अ०-एम जाणीने नोकरनो वेष लेइ ते जिनदास शेठ प्रभाविक रत्नो लेइने (पोताना मित्र) लक्ष्मीधरनी साथे नगरमांर्थी IPL नीकळी गयो. // 16 // अजानन्नपि पन्थानं गच्छन्नेष निरन्तरम् अरण्ये पतितः क्वापि तृष्णातरललोचनः // 17 // अ०-मार्ग नही जाणतां छतां पण निरंतर चालतो ते शेठ तृषाथी चपल चक्षुओवाळो थयो थको कोइक जङ्गलमा जइ चड्यो तत्र वस्त्रलवाबद्धां रत्नाली सुहृदः करे। रीणोऽयमर्पयामास जीवितव्यमिवात्मनः // 18 / / अ० त्यां पोताना जीवितव्य सरखी, अने वस्त्रना टुकडामां बांधेली ते रत्नोनी श्रेणीने, गभरायेला ते शेठे मित्रना हाथमां सोपी. क्वापि पश्यन्पयः कूपे रत्नलोभाद्विजेन सः कराभ्यां पतितः प्रेर्य विश्वासः कोऽस्तु जीवताम् // 19 // अपळी कोडक कुवामां जलने जोता एवा ते शेठने रत्नोना लोभथी ते ब्राह्मणे बन्ने हाथथी हडसेलीने फेंकी दीधो, जीवता माणसनो विश्वास शानो होय ?

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