Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit
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________________ // 15 // समित्रा अ०-पछी तेणे क्षणवारमा ते सुमित्रामाताने दान आपती अटकावी, केमके स्त्रीने वश थयेला पुरुषो निर्बलपणानो पण चरित्रम् स्वीकार करे छे. // 71 // // 15 // IMI संस्मृत्य नियम सा स्वं निश्चिकायेति चेतसि / अदत्ते भोज्यमात्रेऽपि न भोक्ष्येऽन्तेऽपि जन्मनः / 72 / MI अ०-(पछी) तेणीए पोताना नियमने याद करीने मनमां एवो निश्चय कर्यो के, भोजन जेटलं पण दान दीधा विना हुं जीव है। जतां पण जमीश नहीं. // 72 // उपवासाष्टकस्यान्ते तस्याः सत्त्वमहानिधेः / वृत्तमज्ञापयतं दुर्यशःशङ्किता जया // 73 // 5 अ०-हिंमतना महान् भंडारसरखी एवी तेणीने आठ उपवासो थयाबाद अपयशनी शंकावाळी जयाए दत्तने ते वृत्तांत जणाव्यो. दत्तेन बन्धुभिः सार्ध निर्बन्धं बन्धताधिकम् / नवमेह्नि भोक्तुमुपवेशिता सेत्यचिन्तयत् // 74 // अ०-पछी बन्धुओ सहित ते दत्ते अत्यन्त आग्रह करीने नवमे दिवसे भोजन करवामाटे बेसाडेली ते एम चिंतववा लागी के, कारणं भोजनत्यागे विदन्नपि सुतः स्वयम् / न मां दापयते किंचिद्धिग्मे दुःकर्मजम्भितम् // 75 // अ०-आ पुत्र पोते मारां भोजन तजवाना कारणने जाणता छतां पण मने [दानमाटे] कंइ अपावतो नथी, माटे मारां दुष्कर्मना 4 उदयने धिक्कार छे. // 75 // मायकल

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