Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit

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Page 16
________________ सुमित्रा // 1 // घरमा ते घणां छे. // 66 // सत्फलं नियमान्मत्वेत्येषाभिग्रहमग्रहात् / स्वेच्छया विधिवदानं दत्वा भोक्ष्येऽहमन्वहम् // 67 // चरित्रम् अ०-नियम लेवाथी उत्तम फल मळे छे, एम जाणीने, मारी इच्छा मुजब हमेशां विधिपूर्वक दान आपीने हुं भोजन करीश, | // 14 // एवो तेणीए अभिग्रह लीधो. // 67 // ततः सुतस्नुषाभ्यां चानुमताभिमतं निजम् / पूरयन्ती मुदा कालं कियन्तं सात्यवाहयत् // 68 // अ०-पछी पुत्र अने पुत्रवधूए अनुमोदेलां पोतानां वांछितने पूरती एवी ते हर्षथी केटलोक समय निर्गमन करवा लागी. 684 दैवज्ञैः कथितेऽत्यर्थमवृष्टे दारुणेऽन्यदा / दुर्भिक्षे सर्वतो जाते जया दत्तमदोऽवत् // 6 // अ०-पछी एक दिवसे ज्योतिषीओए अत्यंत भयंकर अवृष्टि थवानुं कहेवाथी चोतरफथी दुष्काळ यये छते जयाए दत्तने एम कर्दा के, मुलेऽपि रौरवः कालोऽपत्यपूर्ण च ते गृहम् / अतः स्वां जननी दानात्कुटुम्बाधार वारय // 70 // अ०-हे कुटुम्बना आधारभूत स्वामी ! मूलमां आ दुष्काळ पण भयंकर छे, अने तमारुं आ घर छयांछोकरांओथी भरेलुं छे, माटे आपनी माताजीने हवे दान देतां अटकावो? अथ तेन निषिद्धाम्बा सुमित्रा दानतः क्षणात् / निःसत्वतामपि ह्यङ्गीकुर्वन्ति स्त्रीजिता नराः // 71 // जबरAALAB

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