Book Title: Sumitra Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit

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Page 18
________________ ar चरित्रम // 16 // तत्स्वभोज्यमिदं किंचित्कस्मैचिच्चेद्ददेऽधुना / तन्मे स्यान्नियमः श्लाघ्योऽश्लाघ्यो न स्याच्च मे सुतः 76/4 सुमित्रा / अ०-माटे आ मारुं किंचित् भोजन आ समये जो हुँ कोइने आपुं, तो मारो नियम प्रशंसनीय थाय, अने आ मारा पुत्रनो अपयश न थाय. // 76 // // 16 // ध्यायन्त्येति गृहायातः सहसैव मुनिस्तदा / अदृश्यत तया मूर्तः पुण्यराशिरिवात्मनः // 77 // अ०-एम विचारती ते मुमित्राए पोताना मूर्तिवंत पुण्यना समूह सरखा, अचानक ते समये धेर आवेला मुनिराजने जोया. 77 साधो विशुद्धमाहारं गृहाणानुगृहाण माम् / वदन्त्येति सहर्षाश्रु प्रत्यलाभि मुनिस्तया // 78 // अ०-हे मुनिराज! आ शुद्ध आहार ग्रहण करो ? अने मारापर कृपा करो ? एम बोलती ते सुमित्राए हर्षाश्रुसहित ते मुनिराजने पतिलाभ्या. // 78 // गन्धाम्बुपुष्पवर्षान्तेऽवदच्छासनदेवता / धन्ये मासोपवासी यत्पारणं कारितस्त्वया // 79 // 18 तत्ते सत्त्वभवादानाच्छान्ता वृष्टिहृतो ग्रहाः / अस्माद्गर्जिरवादिव्याद् वृष्टो दुर्भिक्षहृद्घनः ॥४०॥युग्मम॥ अ०--सुगंधि जल तथा पुष्पोनी वृष्टिने अन्ते शासनदेवीए कह्यु के, हे धन्ये! तमोए जे एक मासना उपवासी मुनिराजने पार IR कराव्यु, // 79 // तेथी हिम्मत भरेला तमारां दानथी वृष्टिने हरनारा ग्रहो शांत थया छे, अने आ दिव्य गर्जारवथी दकालने 30%-REAC% RESS-CRAFACEUTENT

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