Book Title: Sthanangsutram Part 02
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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पञ्चादिवर्णादीन्यवयवभेदेनेति, अक्षिगोलकादिषु तथैवोपलब्धेः, 'दो गंध'त्ति सुरभिदुरभिभेदात् , "अट्ट फास'त्ति कठिनमृदुशीतोष्णगुरुलघुस्निग्धरूक्षभेदादिति, अबादरबोन्दिधराणि तु न नियतवर्णादिव्यपदेश्यानि, अपर्याप्तत्वेनावयवविभागाभावादिति, अनन्तरं शरीराणि प्ररूपितानीति शरीरिविशेषगतान् धर्मविशेषान् पंचहिं ठाणेहीत्यादिनाऽऽर्जवसूत्रान्तेन ग्रन्येन दर्शयति ।
पंचहिं ठाणेहिं पुरिमपच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति, सं०-दुआइक्खं दुविभज दुपस्सं दुतितिक्खं दुरणुचरं। पंचहिं ठाणेहिं मझिमगाणं जिणाणं सुगमं भवति, तं०-सुआतिक्खं सुविभजं सुपस्सं सुतितिक्खं सुरणुचरं। पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिचं वनिताई निच्चं कित्तिताई णिचं युतिताई णिचं पसत्थाई निश्चमब्भणुन्नाताई भवंति, वं०-खंती मुत्ती अजवे महवे लाघवे, पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं जाव अब्भणुन्नायाई भवंति, तं०-सच्चे संजमे तवे चिताते बंभचेरवासे, पंच ठाणाई समणाणं जाव अब्भणुन्नायाई भवंति, तं०-उक्खित्तचरते निक्खित्तचरते अंतचरते पंतचरते लूहचरते, पंच ठाणाई जाव अब्भणुण्णायाई भवंति, तं०-अन्नातचरते अनइलायचरे मोणचरे संसट्ठकप्पिते तज्जातसंसट्ठकप्पिते, पंच ठाणाई जाव अब्भणुन्नाताई भवंति, तं०-उवनिहिते सुद्धेसणिते संखादत्तिते दिट्ठलाभिते पुट्ठलाभिते, पंच ठाणाई जाव अब्भणुण्णाताई भवंति, तं०-आयंबिलिते निवियते पुरमड़िते परिमिते पिंडवाविते भिन्नपिंडवाविते, पंच ठाणाई० अन्भणुन्नायाई भवंति, तं०-अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लूहाहारे, पंच ठापाई० अब्भणुन्नायाई भवंति, तं०-अरसजीवी विरसजीवी अंतजीवी
ख्या ५०
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