Book Title: Sthanang Sutram Part 02
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 18
________________ पञ्चममध्ययनं पञ्चस्थानकम् । प्रथम उद्देशकः । ४१९ एगाई सत्तंते ठविउं मज्झं च आदिमणुपंतिं । उचियकमेण य सेसे जाण महं सव्वओभदं ॥ [ ] ति, पारणकदिनान्येकोनपञ्चाशदिति १। स्थापना | १ २ ३ ४ ५ ६ ७ । ४ ५ ६ ७ १ २ ३। | ७१ २ ३ ४ ५ ६ । ३ ४ ५ ६ ७ १२। ६७१२ ३ ४ ५ । २ ३ ४ ५ ६ ७१। ५६७१२ ३ ४ । भद्रोत्तरप्रतिमा द्विधा क्षुल्लिका महती च, तत्र आद्या द्वादशादिना विंशान्तेन पञ्चसप्तत्यधिकदिनशतप्रमाणेन तपसा भवति, अस्याः स्थापनोपायगाथापंचाई य नवंते ठविउं ममं तु आदिमणुपंतिं । उचियकमेण य सेसे जाणह भद्दोत्तरं खु९ ॥ [ पारणकदिनानि पञ्चविंशतिरिति २, स्थापना |५ ९५ ६ ७८ ६ ७ ८ ९५ ८९५६७ महती तु द्वादशादिना चतुर्विंशतितमान्तेन द्विनवत्यधिकदिनशतत्रयमानेन तपसा भवति, तत्र च गाथा पंचादिगारसंते ठविउं मज्झं तु आइमणुपंतिं ।। उचियकमेण य सेसे महई भद्दोत्तरं जाण ॥ [ ] इति, पारणकदिनान्येकोनपञ्चाशदिति ३ । स्थापना | ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ ८ ९ १० ११ ५ ६ ७ ११ ५ ६ ७ ८ ९ १० ७ ८ ९ १० ११ ५ ६ १० ११ ५ ६ ७ ८ ९ ९ १० ११ ५ ६ ७ ८ [सू० ३९३] पंच थावरकाया पन्नत्ता, तंजहा-इंदे थावरकाए, बंभे थावरकाए, सिप्पे थावरकाए, सम्मुती थावरकाए, पाजावच्चे थावरकाए ।

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